भोपाल। भोपाल कान्हा टाइगर रिजर्व के रेंजरों ने शुक्रवार को जो देखा उसे देखकर वे हैरान रह गए। एक बाघ दूसरे बाघ के शव को खा रहा था। कुछ दिनों पहले भी कान्हा में ही ऐसी एक और घटना हुई थी जिसमें मृत बाघिन का शव क्षत-विक्षत पाया गया था। तब यही अनुमान लगाया गया था कि इसे किसी दूसरे बाघ ने खाया होगा, लेकिन यह पहला मौका था जब गश्ती दल ने ऐसा होते हुए न केवल अपनी आंखों से देखा बल्कि उसे कैमरे में भी कैद किया। कान्हा रिजर्व में ऐसी घटनाएं लगातार हो रही हैं। बाघों की इस नई प्रवृत्ति को लेकर अब शोध शुरू हो गया है।
मृत बाघ को नहीं ले पाए कब्जे में
वन्य अधिकारियों के मुताबिक, कान्हा के किसली रेंज में मगरनाला इलाके में टी56 नाम के बाघ ने टी36 बाघ को मार डाला। कान्हा रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर एल कृष्णमूर्ति कहते हैं कि जो बाघ मारा गया वह हमलावर से दो साल बड़ा था। यह बात साफ है कि यह इलाके को लेकर हुई लड़ाई का नतीजा था। हमलावर बाघ मृत बाघ के शरीर की रखवाली कर रहा था। हम उसके बर्ताव पर नजर रखे हुए थे। हम मृत बाघ का शव कब्जे में नहीं ले पाए क्योंकि बाघ उसे छोड़ नहीं रहा था।
बाघों में पनप रहे नए बर्ताव पर बढ़ी चिंता पर्यावरणविद् परेशान
कान्हा में इस तरह की घटना पिछले तीन महीने में पांचवीं बार हुई है। इससे पर्यावरणविद् परेशान हो रहे हैं, खासकर वे छोटे बाघों के लेकर चिंता में हैं। 2019 में मारे जाने वाले पांच बाघों में तीन बाघ वयस्क नहीं हो पाए थे। कान्हा में 100 से ज्यादा बाघों का घर है, इनमें से 83 वयस्क बाघ हैं।
कैनिबलिज्म का केस
जब कोई जीव अपनी ही प्रजाति के जीव को खाए तो उसे अंग्रेजी में कैनिबलिज्म या स्वजाति भक्षण कहते हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या पर्याप्त शिकार के अभाव की वजह से कान्हा के बाघों में यह कैनिबलिज्म देखा जा रहा ? लेकिन कृष्णमूर्ति का कहना है कि कान्हा में बाघों के लिए खाने को पर्याप्त शिकार है। हालांकि वन्य अधिकारी यह भी कहते हैं कि अपने इलाके की रक्षा के लिए बाघ एक-दूसरे को मार रहे हैं, लेकिन ये भी बाघों की इस आदत पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं।
भारत में ही बाघों में ऐसी घटनाएं
वन्यजीव विशेषज्ञ वाल्मीक थापर कहते हैं कि पूरे भारत में बाघ और पूरी दुनिया में शेर के मामले में ऐसी घटनाएं होती हैं। रणथंभौर टाइगर रिजर्व में भी ऐसा हुआ था। वे इतने गुस्से में लड़ते हैं कि दूसरे बाघ को खा जाते हैं, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता। वे मारकर बाघ को क्यों खाते हैं या क्यों छोड़ देते हैं, इसका जवाब किसी के पास भी नहीं है। यह सिर्फ हमलावर बाघ के दिमाग में होता है। बाघों और बाघ-बाघिन के बीच लड़ाई होने की अलग-अलग वजहें होती हैं। बाघों के बीच अक्सर इलाके को लेकर लड़ाई होती है। बाघिन कभी इलाका नहीं बनाती।
यहां हो रहा है शोध
16 मार्च को एक बाघ ने दो छोटी उम्र के बाघों को मार कर खा लिया था। माना जाता है कि 19 जनवरी को इसी बाघ ने एक बाघिन को मारकर खाया था। इसी के बाद मप्र के वन्यजीव विभाग ने संरक्षित इलाकों में रह रहे बाघों में कैनिबलिज्म की घटनाओं पर शोध शुरू करवा दिया है।
यह है खास वजह
विशेषज्ञों के मुताबिक कान्हा राष्ट्रीय पार्क उच्च घनत्व क्षेत्र है। यहां बाघों की संख्या ज्यादा है। ऐसे में इलाके और बाघिन को लेकर टकराव बढ़ जाता है। बाघिन की बात करें तो इलाके को लेकर बाघ और बाघिन के बीच कभी लड़ाई नहीं होती। इनमें लड़ाई की वजह मेटिंग होती है। इसमें भी दो-तीन स्थितियां होती हैं। कई बार बाघिन के मेटिंग से मना करने पर बाघ उससे लड़ पड़ता है। बाघिन अपने बच्चों के कारण भी मेटिंग से मना करती है। बच्चे दो साल तक बाघिन के साथ रहते हैं। बाघ बच्चों को भी मार सकता है क्योंकि बच्चे न होने पर बाघिन मेटिंग के लिए तैयार हो जाती है।