नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि प्रौद्योगिकी ने उस अवधारणा को खत्म किया है जिसमें इसे जोड़ने वाला नहीं बल्कि तोड़ने वाला माना जाता था। टाटा संस के अध्यक्ष एन चंद्रशेखरन और टाटा समूह की मुख्य अर्थशास्त्री रुपा पुरुषोत्तनम की लिखित पुस्तक ‘‘ब्रिजिटल इंडिया’’ का विमोचन करने के अवसर पर मोदी ने कहा कि इस पुस्तक में सरकार के उस विजन को और मजबूत किया है जिसके मुताबिक प्रौद्योगिकी जोड़ने का काम करती है, तोड़ने का नहीं। इस मौके पर टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा मौजूद थे। मोदी ने प्रधानमंत्री आवास, 7 लोक कल्याण मार्ग पर एक समारोह में रविवार को पुस्तक का विमोचन किया। उन्होंने पुस्तक लेखकों की प्रशंसा करते हुए कहा कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी के बावजूद कैसे खुश और तनाव मुक्त रहा जा सकता है, लेखकों ने यह सिद्ध किया है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में इस पर भी एक किताब चंद्रशेखरन को लिखनी चाहिए।
मोदी ने कहा कि बीते पांच वर्ष के कार्यकाल के दौरान सरकार ने इसी भावना से काम किया और भविष्य के लिए भी यही सोच है। पुस्तक में किताब में कृत्रिम गोपनीयता, मशीन लर्निंग और रोबोटिक्स जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकी विकास के औजार में कैसे मददगार साबित हो सकती है, इसका बेतहरीन ढंग से वर्णन किया गया है। उन्होंने अपने अनुभव का जिक्र करते हुए कहा कि पिछले पांच वर्षों के शासन में प्रौद्योगिकी के हस्तक्षेप से देश में गवर्नेंस से कैसे सुधार और बदलाव किया गया है, यह सबके सामने है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि देश में रसोई गैस कनेक्शन देने की योजना, सब्सिडी देने का काम दशकों से चल रहा है। उनकी सरकार ने जब उज्ज्वला योजना की शुरुआत की तो कई लोगों को लगा कि यह योजना भी शायद वैसी ही होगी जैसी पहले बनती आई हैं, लेकिन इसके लिए हमने सोच को भी बदला और धारणा को भी बदला और इस काम में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया गया।
डाटा की मदद से पहले हमने 17 हजार मौजूदा एलपीजी डिस्ट्रिब्यूशन सेंटर्स का पता लगाया और फिर 10 हजार नए केन्द्र बहुत कम समय में तैयार किए। इसके लिए हमने देश के हर गांव को डिजिटली मैप किया। इस डेटा से बिक्री रिपोर्ट, रसोई गैस पाने वालों की आबादी और सामाजिक-आर्थिक स्थिति का अध्ययन कर लाखों गांवों में से करीब 64 लाख डायवर्स डेटा प्वाइंट्स का आधार तय किया गया कि ये वितरक केंद्र कहां कहां बनाये जाने चाहिए। इसमें आई एक और बड़ी समस्या का निदान प्रौद्योगिकी से हुआ। डेशबोर्ड पर एप्लीकेशन और वितरण के वास्तविक समय निगरानी के दौरान सामने आया कि बड़ी संख्या में महिलाओं के आवेदन खारिज हो रहे हैं क्योंकि इनके पास बैंक खाता नहीं था। इस समस्या से निपटने के लिए जनधन शिविर लगाकर इन महिलाओं के बैंक खाते खोले गए। इस परिणाम यह हुआ कि सरकार ने तीन साल में आठ करोड़ कनेक्शन देने का जो लक्ष्य तय किया था, उसे काफी पहले ही हासिल कर लिया गया।