इटावा। भगवान श्रीकृष्ण की विश्रामस्थली के रूप में विख्यात उत्तर प्रदेश के इटावा स्थित वृन्दावन में मुगलकालीन शिल्पकला से निर्मित विशाल गगनचुम्बी मंदिर आवासीय परिसरों में तब्दील हो जाने के बावजूद आज भी लोगों को अपनी ओर आकृष्ट कर रहे हैं। इटावा के तत्कालीन जिला सूचना अधिकारी के.एल. चौधरी द्वारा सम्पादित उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग की पुस्तक ’’इतिहास के झरोखे में इटावा‘‘ के अनुसार मथुरा से अयोध्या जाते समय भगवान श्रीकृष्ण ने इटावा में जिस स्थान पर विश्राम किया था,
उसे वृन्दावन के नाम से पुकारा जाता है । कुछ समय पहले तक इन मंदिरो में मथुरा वृन्दावन की तर्ज पर जन्माष्टमी के दरम्यान भव्यतापूर्ण ढंग से सजाया जाता था और यहॉ आठ दिनो तक मेले की पंरपरा रहा करती थी लेकिन अब यह पंरपरा लोगो की अरूचि के कारण मंदिर सूने रहने लगे है।
इटावा के के.के.पी.जी.कालेज के इतिहास विभाग के प्रमुख डा.शैलेंद्र शर्मा का कहना है कि इटावा का पुरबिया टोला एक समय आध्यात्मिक साधना का बडा केंद्र रहा है। असल में पुरबिया टोला के वासी पुरातन पंरपराओं को निभाने में सबसे आगे रहने वाले माने गये है। इसी कड़ी में यहॉ पर धार्मिक आयोजन खासी तादात मे होते रहे है। औरंगजेब के काल मे यहॉ पर टकसाले खोली गई थी पुरबिया टोला गुप्तरूप से आघ्यात्मिक साधना का केंद्र रहा है। बेसक एक वक्त धार्मिक केंद्र के रूप मे लोकप्रिय रहे पुरबिया टोला अतिआधुनिक काल मे पुरानी परपंराओं से दूरी बनाता हुआ दिख रहा है जिसके प्रभाव मे अब पहले की तरह से यहॉ पर जन्माष्टमी नही मनाई जाती है।
उन्होंने बताया कि इसी पावन भूमि पर इटावा का प्राचीन गुरुद्वारा भी है जिसे सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानक के पुत्र चंद की याद में उनके द्वारा स्थापित उदासीन सम्प्रदाय के भक्तों ने स्थापित किया था। इटावा के पुरबिया टोला मुहल्ले में स्थित इन मंदिरों में ग्यारह बडेÞ मंदिर हैं। इन मंदिरों में जवाहरलाल, जगन्नाथ मंदिर, सिपाही राम मंदिर और जिया लाल मंदिर की बनावट पर मुगलकालीन शिल्प कला का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। अन्य मंदिरों की बनावट पारंपरिक है। इन मंदिरों में तीन ठाकुर द्वारे है। दो राधाकृष्ण के और एक राम, लक्ष्मण , सीता का मंदिर है। शेष शिव मंदिर हैं।