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इस वक्‍त इस मंदिर में जाओगे, तो प्रसाद में मिलेगा... ये खून

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jun 22 2017 2:15PM | Updated Date: Jun 22 2017 2:18PM
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असम। योनि एक ऐसा शब्द जिसे बोलने के पहले सौ बार सोचेंगे और पीरियड्स की बात! वो तो भूल ही जाओ। आज भी देश के आधे पुरुष ये मानते हों कि पीरियड का मतलब पैड पर नीली स्याही गिरना है, तो अचंभा नहीं होगा।

मगर ऐसे ही समाज में एक मंदिर ऐसा है, जहां देवी की योनि की पूजा की जाती है। और साल में एक बार उन्हें होने वाले पीरियड पर बड़ा सा पर्व मनाते हैं।
 
असम में 22 जून से अंबुबाची पर्व शुरू होने वाला है। और ये अगले चार दिन यानी 25 जून तक चलने वाला है। देश भर से भक्त मंदिर में दर्शन के लिए जायेंगे। उस दौरान सिटी का ट्रैफिक थम जाएगा और सभी लोग इस फेस्टिवल को धार्मिक और पवित्र ज़ज्बे के साथ मनाएंगे। असम की सरकार ने श्रद्धालुओं को आकर्षित करने के लिए इसमें कुछ कल्चरल परफॉर्मेंसेस को भी जोड़ने का फैसला किया है।
 
अब सुनिए उस पर्व की कहानी, जहां प्रसाद में मिलता है पीरियड के खून से रंगा हुआ कपड़ा।

कामाख्या– ‘द मिथ’
कामाख्या को ‘सती’ का एक अवतार माना जाता है। सती की मृत्यु के बाद, शिव ने तांडव नृत्य शुरू कर दिया था। उन्हें रोकने के लिए विष्णु ने अपना चक्र छोड़ा था। जिसने सती के शरीर को 51 हिस्सों में काट दिया था। ये 51 हिस्से धरती पर जहां-जहां गिरे, उन्हें ‘शक्तिपीठ’ का नाम दिया गया। इन्हीं में से एक हिस्सा वहां गिरा, जहां पर इस वक्त कामाख्या मंदिर है।

क्यों पड़ा ये नाम?
सती का गर्भाशय जिस जगह पर गिरा था, उसका पता तब तक नहीं चल पाया था जब तक कामदेव ने उसे ढूंढा नहीं था। कामदेव ने शिव के शाप से मुक्त होने के लिए इसे ढूंढा। कामदेव का शरीर तहस-नहस हो चुका था। लेकिन उन्होंने सती की योनी ढूंढ कर उसकी पूजा की। और अपना शरीर वापस पा लिया। इसलिए इस मंदिर या देवी को कामाख्या के नाम से जाना जाता है। क्योंकि कामदेव इनकी पूजा करते थे।

कामाख्या मंदिर
ये मंदिर 1565 में नरनारायण ने बनवाया था। अपने बनने के साथ ही ये मंदिर अंबुबाची मेले से जुड़ गया था। मंदिर के गर्भगृह में देवी की कोई मूर्ति नहीं है। उनकी पूजा की जाती है एक पत्थर के रूप में. जो एक योनि के आकार का है और जिसमें से नैचुरली पानी निकलता है।

कौन जाता है इस पर्व में?
नागा साधुओं से लेकर अघोरी तक वो लोग भी, जो ये मानते हैं कि अधर्म ही ‘निर्वाण’ को पाने का सही रास्ता है; और सभी तरह के संन्यासी इस फेस्टिवल में जाते हैं। हालांकि ये पर्व सिर्फ साधुओं और सन्यासियों के लिए नहीं है। बल्कि असम राज्य के और हिस्सों से और भारत के हर कोने से लोग देवी के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद लेने आते हैं।
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