नई दिल्ली। देश के फाइनेंस सेक्टर को एक बड़े झटके का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल, देश की बड़ी इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग और कंस्ट्रक्शन कंपनी इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग एंड लीजिंग सर्विसेज लि. (आईएलएंडएफएस) ने पूरे नॉन-बैंकिंग सेक्टर में भूचाल ला दिया जब यह पिछले कुछ हफ्तों में कर्ज अदायगी में असफल रहा।
अब इंडस्ट्री के अधिकारियों एवं एक्सपर्ट्स का कहना है कि रेग्युलेटर्स 1,500 छोटी-छोटी नॉन-बैंकिंग फाइनेंशल कंपनियों के लाइसेंस कैंसल कर सकते हैं क्योंकि इनके पास पर्याप्त पूंजी नहीं है। इसके साथ ही, अब नॉन-बैकिंग फाइनेंशल कंपनियों के नए आवेदन की मंजूरी में भी मुश्किलें आएंगी। रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया नॉन-बैंकिंग फाइनैंशल कंपनियों के लिए नियम कड़े कर रहा है। उसने इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
दरअसल, पिछले शुक्रवार को एक बड़े फंड मैनेजर ने होम लोन प्रदाता दीवान हाउसिंग फाइनैंस के शॉर्ट टर्म बॉन्ड्स को बड़े डिस्काउंट पर बेच दिया। इससे नगदी संकट की समस्या बढ़ने का डर पैदा हो गया है। आरबीआई के पूर्व डेप्युटी गवर्नर और अब बंधन बैंक लि। के नॉन-एग्जिक्युटिव चेयरमैन हारुन राशिद खान ने कहा, 'जिस तरह से चीजों से पर्दा उठ रहा है, वह निश्चित रूप से चिंता का सबब है और इस सेक्टर की कंपनियों की संख्या घट सकती हैं।'
खान ने आगे कहा, 'कुल मिलाकर बात यह है कि उन्हें अपने ऐसेट-लाइबिलिटी मिसमैच (पूंजी और कर्ज में भारी अंतर) पर ध्यान देना होगा।' उन्होंने यह बात इस संदर्भ में कही कि कुछ कंपनियों ने लोन छोटी अवधि के लिए लिए थे जबकि उन्हें राजस्व की जरूरत लंबे समय तक के लिए है।
ऐसे में अब पूरा ध्यान गांवों और कस्बों में कर्ज देनेवाली हजारों छोटी-छोटी कंपनियों पर चला गया है। अभी 11 हजार 400 नॉन-बैंकिंग फाइनैंशल कंपनियां संदेह के घेरे में हैं जिनका कुल बैलेंस शीट 22.1 लाख करोड़ रुपये का है। इन पर बैंकों के मुकाबले बहुत कम कानूनी नियंत्रण है। इन कंपनियों के लगातार नए निवेशक मिल रहे हैं। नॉन-बैंकिंग फाइनेंशल कंपनियों के लोन बुक्स बैंकों के मुकाबले दोगुनी गति से बढ़ी है और इनमें बड़ी-बड़ी कंपनियों को टॉप क्रेडिट रेटिंग्स भी मिलती रही। अब इन क्रेडिट रेटिंग्स भी सवालों के घेरे में है।