नई दिल्ली। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा ने आज कहा कि देश में भैंसों में नस्ल सुधार के माध्यम से दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए उत्कृष्ट नर भैंसों की खरीद की जायेगी। डॉ महापात्रा ने यहां क्लोन नर भैंस के वीर्य से नस्ल सुधार विषय पर आयोजित सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि दूध उत्पादन बढ़ाने से किसानों की आय में वृद्धि होगी।
उन्होंने कहा कि देश के अलग-अलग हिस्सों में उत्कृष्ट नस्ल के नर भैंसे हैं जिनका वैज्ञानिक अध्ययन कर उनकी खरीद की जायेगी और इसके लिए राशि की कमी नहीं होने दी जायेगी। उन्होंने कहा कि उत्कृष्ट नस्ल के नर भैंसे का पता लगाने के लिए मिशन मोड में सर्वेक्षण किया जाना चाहिए। केन्द्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान हिसार और राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल बेहतरीन नर भैंस का पता लगाने के लिए अभियान चलायेगा और चुंिनदा पशुओं को इन संस्थानों में रखा जायेगा।
इन संस्थानों में नर भैंस के क्लोन के माध्यम से नया नर बछड़ा तैयार किया जायेगा तथा इससे प्राप्त वीर्य से आम लोगों के भैंस में कृत्रिम गर्भाधान कराया जायेगा। क्लोन किसी कागज का फोटो स्टेट करने के समान है। डॉ महापात्रा ने कहा कि देश में 16 नस्ल की भैंसें उपलब्ध हैं, जिनका औसत दूध उत्पादन प्रतिदिन पांच किलोग्राम से कम है। वह चाहते हैं कि नस्ल सुधार के माध्यम से औसत भैंस का दूध उत्पाद प्रतिदिन सात से आठ किलोग्राम किया जाये।
उन्होंने कहा कि देश में काफी संख्या में 25 किलोग्राम तक दूध देने वाली भैंसें हैं और उत्कृष्ट किस्म के नर भैंस भी उपलब्ध हैं जिनसे नस्ल सुधार का कार्य तेज किया जा सकता है। एक नर भैंस के वीर्य से कम से कम 10 भैंस में कृत्रिम गर्भाधान कराया जा सकता है। महानिदेशक ने कहा कि देश में 15-16 साल पहले पशुओं के क्लोन बनाने की प्रौद्योगिकी पर काम शुरू हुआ था और अब तक क्लोन से 16 पशु तैयार किये गये हैं। उन्होंने कहा कि पशुओं में नस्ल सुधार के लिए क्लोन बेहतरीन तकनीक है जिसका लाभ किसानों को मिलना चाहिए।
देश में मुर्रा नस्ल की भैंस में क्लोन तकनीक के माध्यम से नस्ल सुधार पर सबसे अधिक ध्यान दिया जा रहा है। केन्द्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान के अनुसार देश में छह करोड़ भैंस हैं, जिनका कुल दूध उत्पादन में आधा हिस्सा है। इन भैंस में कृत्रिम गर्भाधान कराने के लिए सालाना 1200 नर भैंस की जरूरत है। कृत्रिम गर्भाधान के लिए एक नर भैंस के वीर्य का पांच-छह साल तक उपयोग किया जाता है। सम्मेलन को उप महानिदेशक पशु विज्ञान जे के जेना, भैंस अनुसंधान संस्थान के निदेशक एस एस दहिया, आयोजन सचिव पी एस यादव आदि ने भी सम्बोधित किया।