नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की बढ़ती जरूरतों तथा आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित मौजूदा प्रक्षेपण केंद्र पर ज्यादा दबाव को देखते हुये देश के पश्चिमी तट पर एक नया प्रक्षेपण केंद्र बनाने की योजना है। इसरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 'श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में अभी दो लॉन्च पैड हैं। वहां तीसरे लॉन्च पैड का काम तेजी से चल रहा है। इसके अलावा पश्चिमी तट पर एक नये प्रक्षेपण केंद्र के लिए हमने कुछ स्थानों पर विचार किया है। नये प्रक्षेपण केंद्र के लिए स्थान तय करने का काम अंतिम चरण में है तथा जल्द इसके बारे में घोषणा की जायेगी।' हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि नये प्रक्षेपण केंद्र के लिए अंतिम फैसला कब तक हो जायेगा।
अधिकारी ने कहा कि इसरो द्वारा विकसित किये जा रहे छोटे उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) के पहले दो मिशन की लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा से ही की जायेगी और उसके बाद एसएसएलवी मिशन का प्रक्षेपण नये केंद्र से किया जायेगा। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि नया प्रक्षेपण केंद्र वर्ष 2020 तक तैयार हो जायेगा क्योंकि इसरो पहले ही कह चुका है कि छोटे प्रक्षेपण यान अगले साल मध्य तक विकसित कर लिये जाएंगे।
उल्लेखनीय है कि पूर्वी तट पर स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से फिलहाल इसरो के सभी मिशनों को अंजाम दिया जाता है। इसरो का प्रक्षेपण अन्य एजेंसियों की तुलना में बेहद सस्ता होने के कारण अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियां भी अपने उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए यहां आने लगी हैं, लेकिन सीमित क्षमता के कारण इसरो अपने मिशनों की संख्या अपेक्षित रूप से नहीं बढ़ा पा रहा है।
2021 में मानव मिशन की तैयारी
हाल ही में घोषित मानव मिशन 'गगनयान' के लिए श्रीहरिकोटा में ही तीसरा लॉनच पैड बनाया जा रहा है। इसरो ने दिसंबर 2021 तक अंतरिक्ष में पहला मानव मिशन भेजने की घोषणा की है। इसमें तीन अंतरिक्ष यात्री शामिल होंगे। इसमें रिकवरी सिस्टम, रिकवरी लॉजिस्टिक, डीप स्पेस नेटवर्क, लॉन्च पैड पर अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा आदि की तकनीक विकसित हो चुकी है। आॅर्बिटल मॉड्यूल और क्रू इस्केप सिस्टम पर काम चल रहा है। हालांकि, अभी अंतरिक्ष यात्रियों का चयन और उनके प्रशिक्षण का काम बाकी है।
पश्चिमी तट ही है विकल्प
अधिकारी ने बताया कि पूर्वी तट पर दूसरा केंद्र स्थापित करने का विकल्प नहीं है क्योंकि यदि हम दक्षिण की ओर जाते हैं तो श्रीलंका 500 किलोमीटर के दायरे में आ जायेगा। इससे ध्रुवीय प्रक्षेपण के समय हमें प्रक्षेपण यान को सीधे भेजने की बजाय बीच में उसका मार्ग थोड़ा मोड़ना होगा जिससे प्रक्षेपण यान की भार वहन क्षमता कम हो जायेगी। इसलिए पश्चिमी तट पर विकल्प तलाशे जा रहे हैं।