नई दिल्ली। भारत ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में निवेश जैसे नये मुद्दे शामिल करने का विरोध करते हुए कहा है कि इससे कृषि, खाद्य सब्सिडी और विकास से जुड़े मसले प्रभावित हो सकते हैं। हाल में ही पेरिस में आयोजित डब्ल्यूटीओ की मंत्रिस्तरीय अनौपचारिक बैठक में भारत ने वार्ता प्रक्रिया शुरू करने पर बल देते हुए कहा कि वैश्विक व्यापारिक मसलों के समाधान के लिए मौजूदा प्रावधानों और व्यवस्थाओं का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। बैठक में भारतीय पक्ष का नेतृत्व केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु ने किया। डब्ल्यूटीओ के 28 सदस्य देशों और महानिदेशक ने इस अनौपचारिक बैठक में भाग लिया।
प्रभु ने डब्ल्यूटीओ का पूर्ण एजेंडा पहले से ही होने का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत को डब्ल्यूटीओ में निवेश संबंधी सुविधा जैसे नये मुद्दे उठाये जाने पर आपत्ति है, क्योंकि इससे कृषि और विकास से जुड़े मौलिक मुद्दे उपेक्षित होने की आशंका है। उन्होंने कहा कि डब्ल्यूटीओ में कामकाज के मार्गदर्शन के लिए अनेक मंत्रिस्तरीय व्यवस्थाएं पहले से ही लागू हो चुकी हैं और वार्ताकार पिछले कई वर्षों से अनेक मुद्दों पर काम कर रहे हैं। मौजूदा व्यवस्थाओं , घोषणापत्रों और निर्णयों के आधार पर कामकाज शुरू किया जाना चाहिए। अब तक किये गये समस्त कार्यों को नजरअंदाज करना तथा नये सिरे से वार्ताओं को तय करना इस प्रणाली के लिए प्रतिकूल एवं नुकसानदेह साबित होगा।
भारत ने कहा कि कुछ देश बहुपक्षीय चर्चाओं को बहुपक्षीय समझौतों के लिए प्रारंभिक प्रयास मानते हैं, लेकिन इस तरह की पहल बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को कमजोर तथा डब्ल्यूटीओ के समावेशी संस्थागत स्वरूप को प्रभावित कर सकती है। बैठक के दौरान भारत ने डब्ल्यूटीओ के समक्ष मौजूद विभिन्न चुनौतियों से निपटने के लिए संयुक्त रुप से तेजी से काम करने पर जोर दिया। विभिन्न वार्ताओं और प्रक्रियाओं में आम सहमति एवं विकास की केंद्रीयता के आधार पर समावेश या समग्रता एवं निर्णय लेने के बुनियादी सिद्धांतों को बरकरार रखने के साथ-साथ उन्हें सुदृढ़ करना होगा। भारत का मानना है कि डब्ल्यूटीओ की विवाद निपटान इकाई व्यापार प्रणाली के लिए सुरक्षा की दृष्टि से केन्द्रीय स्तंभ है इसलिए अपीलीय निकाय में रिक्तियां भरने के लिए चयन प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए।
कुछ देशों के एकतरफा व्यापार उपायों और प्रतिक्रियात्मक कदमों पर भारत ने कहा कि इस तरह के कदम एवं उस पर तीखी प्रतिक्रिया से वैश्विक अर्थव्यवस्था का विकास रुक जाएगा और इसका असर रोजगार, आर्थिक वृद्धि एवं विकास पर पड़ेगा। इससे हर कोई प्रभावित होगा और इसके साथ ही कड़ी मेहनत से तैयार की गई नियम आधारित बहुपक्षीय प्रणाली पर भी आने वाले वर्षों में संकट आ सकता है। व्यापारिक विवादों से निपटने के लिए डब्ल्यूटीओ के भीतर रहकर इस तरह के मुद्दों से निपटना बेहतर साबित होगा।