नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए एक व्यक्ति की तीन साल की सजा खत्म कर उसे मुक्त कर दिया। व्यक्ति पर आत्महत्या के लिए उसकावे का आरोप था। इस पर उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था देते हुए कहा कि, अपशब्द कहना किसी को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं हो सकता है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने मृतक के द्वारा लिखा गया सुसाइड नोट भी खारिज कर दिया।
आरोपी अर्जुन ने आत्महत्या कर चुके रोजगोपाल को 80 हजार रुपए दिए थे। इन रुपयों को चुकाने में वह काफी समय लगा रहा था। इससे तंग आकर राजगोपाल को कर्ज चुकाने की स्थिति में न देख अर्जुन ने उसे अपशब्द कहे थे। इससे खुद को अपमानित महसूस करने के कारण राजगोपाल ने आत्महत्या कर ली थी। राजगोपाल ने सुसाइड नोट छोड़ा था।
सुसाइड नोट में मृतक राजगोपाल ने लिखा था कि, वह अर्जुन से लिया कर्ज चुकाने में सक्षम नहीं है। इस कारण वह यह फैसला ले रहा है। इसी के आधार पर आरोपी अर्जुन को ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया था। कोर्ट ने अर्जुन को तीन साल जेल की सजा सुनाई थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि इससे यह साबित नहीं होता होता कि आरोपी ने किसी मंशा के तहत ऐसा किया हो।
साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए आरोपी को आत्महत्या के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। ज्ञात हो कि ट्रायल कोर्ट द्वारा अर्जुन को सजा सुनाए जाने के बाद उसके परिजनों ने आगे की कानूनी लड़ाई लड़ी और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अर्जुन और उसके परिजनों को राहत मिली है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुसाइड नोट भी खारिज किया
जस्टिस आर भानुमति और इंदिरा बनर्जी की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। इसी पर पीठ ने व्यवस्था देते हुए कहा कि, अपशब्द कहकर किसी को अपनामित करना उसके आत्महत्या का कारण नहीं हो सकता। इसके साथ ही कोर्ट ने सुसाइड नोट भी खारिज कर दिया।