बुद्धि और शिक्षा के देवता बृहस्पति की कृपा जिस पर होती है, उसका जीवन बदल जाता है। अगर आप भी गुरु बृहस्पति की दयादृष्टि चाहते हैं तो गुरुवार का व्रत शुरू कर दें। किसी भी माह के शुक्ल पक्ष में अनुराधा नक्षत्र और गुरुवार के योग के दिन इस व्रत की शुरूआत करनी चाहिए।
नियमित सात व्रत करने से गुरु ग्रह से उत्पन्न होने वाला अनिष्ट नष्ट हो जाता है। कथा और पूजन के समय मन, कर्म और वचन से शुद्ध होकर मनोकामना पूर्ति के लिए बृहस्पति देव से प्रार्थना करनी चाहिए। पीले रंग के चंदन, अन्न, वस्त्र और फूलों का इस व्रत में विशेष महत्व होता है।
विधि
सूर्योदय से पहले उठकर स्नान से निवृत्त होकर पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। शुद्ध जल छिड़क कर पूरा घर पवित्र करें। घर के ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान बृहस्पति की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके बाद पीत वर्ण के गंध-पुष्प और अक्षत से विधि-विधान से पूजन करें।
इसके बाद निम्न मंत्र से प्रार्थना करें। इसके बाद आरती कर व्रतकथा सुनें। धर्मशास्तार्थतत्वज्ञ ज्ञानविज्ञानपारग। विविधार्तिहराचिन्त्य देवाचार्य नमोस्तु ते॥ तत्पश्चात् इस दिन एक समय ही भोजन किया जाता है।
व्रत करने वाले को भोजन में चने की दाल अवश्य खानी चाहिए। बृहस्पतिवार के व्रत में कंदलीफल (केले) के वृक्ष की पूजा की जाती है। बृहस्पतिवार व्रत के पूजन से स्त्री-पुरुष को बृहस्पतिदेव की अनुकम्पा से धन-संपत्ति का अपार लाभ होता है। परिवार में सुख-शांति रहती है।
स्त्रियों के लिए बृहस्पतिवार का व्रत बहुत शुभ फल देने वाला है। बृहस्पतिवार की पूजा के पश्चात कथा सुनने का विशेष महत्व है। बृहस्पतिवार के दिन व्रत करने और कथा सुनने से विद्या का लाभ होता है।