आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूजा का विधान है। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृतकृत्य होता था। आज भी इसका महत्व कम नहीं हुआ है। पारंपरिक रूप से शिक्षा देने वाले विद्यालयों में, संगीत और कला के विद्यार्थियों में आज भी यह दिन गुरू को सम्मानित करने का होता है। पवित्र नदियों में स्नान के उपरांत मंदिरों में अभिषेक, पूजन तथा प्रसाद अर्पित करते हुए गुरुपूर्णिमा मनाए जाने की परंपरा है।इस पर्व पर श्री हनुमान जी के गुरू रूप में पूजन का भी विधान है ।
शास्त्रों में गुरु का स्मरण ईश्वर से पूर्ण करने का निर्देश मिलता है अतः गुरु पूर्णिमा के दिन सभी शिष्यों एवम भक्तों को चाहिए कि वह अपने गुरु का श्रद्धा पूर्वक पूजन करें, और उन्हें व्यास जी का अंश मानते हुए उनका यथासंभव धूप, दीप ,नैवेद्य आदि से चरण पूजन करते हुए यथाशक्ति दक्षिणा भेंट करें। गुरु के अभाव में सूर्य या शिव को गुरु मानकर गुरु पूर्णिमा के दिन उनका पूजन किया जा सकता है, ऐसा शास्त्रीय मत है। अथवा अपने इष्ट देव को भी गुरु रुप में स्थापित कर उनका विधिवत पूजन करना भी शास्त्र सम्मत है।
ज्योतिर विद राजेश साहनी