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मायावती छठी बार बसपा अध्यक्ष निर्वाचित, पार्टी की कार्यकारिणी बैठक में लिया गया फैसला

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Aug 27 2024 3:40PM | Updated Date: Aug 27 2024 3:40PM
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती छठी बार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष निर्वाचित हुयी हैं। बसपा दफ्तर में बुलायी गयी पार्टी की केन्द्रीय कार्यकारिणी तथा स्टेट पार्टी यूनिट के वरिष्ठ पदाधिकारियों में मंगलवार को यह निर्णय लिया गया है। बैठक में मायावती को सर्वसम्मति से एक बार फिर पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। पार्टी सूत्रों के अनुसार बैठक का मुख्य एजेण्डा बसपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का चुनाव होना था, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा ने मायावती को फिर से पार्टी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव किया जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया।

इस अवसर पर सुश्री मायावती ने कहा कि ग़ैर-कांग्रेसवाद की तरह ही अब देश की राजनीति ग़ैर-भाजपावाद में उलझ कर रह गयी है, जबकि ये दोनों ही पार्टियाँ व इनके गठबंधन बहुजन, दलितों, आदिवासियों, ओबीसी, मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के सच्चे हितैषी न कभी थे और न ही कभी इनके सच्चे हितैषी हो सकते हैं, क्योंकि इन बहुजनों के प्रति इनकी सोच हमेशा ही किसी की खुलकर तो किसी की भीतर ही भीतर संकीर्ण, जातिवादी, साम्प्रदायिक, द्वेषपूर्ण व तिरस्कारी रही है जो संविधान की असली मंशा से कतई भी मेल नहीं खाती हैं।

उन्होने कहा कि भाजपा और कांग्रेस के शासनकाल में बहुजनों की हालात में अपेक्षित जरूरी सकारात्मक सुधार अभी तक भी नहीं हो पाया है तथा समाज एवं देश में हर प्रकार की विषमतायें (गैर-बराबरी) बढ़ रही हैं, हालाँकि इनके वोट के नाम पर राजनीति आज यूपी व देश भर में काफी चरम पर है।

साथ ही, खासकर आरक्षण के संवैधानिक सकारात्मक प्रावधानों के ज़रिए इनकी सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक हालत में सुधार का लक्ष्य न्यूनतम स्तर पर ही बना हुआ है और अब तो इन्होंने आपस में मिलकर षडयंत्र के तहत् आरक्षण की व्यवस्था को ही पूरी तरह से निष्क्रिय व निष्प्रभावी बना दिया है तथा इनके सरकार में इनकी बैकलाग के खाली पड़े पदों को भी भरा नहीं जा रहा है, यह स्थिति काफी दुःखद ही नहीं बल्कि चिन्ताजनक भी है जिसके विरुद्ध अभियान को हर हाल में लगातार जारी रखने की जरूरत है। देश में पहली बार उत्तर प्रदेश में 2007 में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद विरोधियों द्वारा यह प्रक्रिया भीतरखाने और भी तेज़ हुई है।

अभी हाल में सन् 2024 के लोकसभा आमचुनाव में भी यही सब कुछ खुले तौर पर देखने को मिला और केन्द्र में भाजपा व कांग्रेस दोनों की ही जातिवादी एवं अहंकारी सरकार बनाने से रोकने में बहुजन समाज काफी हद तक पिछड़ गया। बी.एस.पी. अगर चुनाव में मजबूती से आगे बढ़ती तो ऐसी परिस्थिति को रोका जा सकता है और तब देश में कोई अहंकारी सरकार की बजाय बहुजन-हितैषी मजबूर सरकार बनती जिससे यहाँ देश में व्याप्त व्यापक महंगाई, ग़रीबी, बेरोजगारी, शोषण व लाचारी आदि के जीवन से लोगों को मुक्ति मिलने की आशा बंध सकती थी।

उन्होने कहा कि राजनीतिक शक्ति के बल पर ही बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर को भारतरत्न से सम्मानित कराया गया तथा मण्डल आयोग की सिफारिशों को लागू करवाकर ओबीसी समाज को सरकारी नौकरी व शिक्षा में दलितों की तरह आरक्षण की सुविधा देश में पहली बार दिलायी गयी, जबकि इसका प्रयास बाबा साहेब ने संविधान में धारा 340 का प्रावधान करके इस पर अमल का प्रयास अपने मंत्रित्वकाल में ही प्रारंभ किया और ऐसा न होने पर अपना कड़ा विरोध भी जताया था।

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