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इस किले की दीवारों में समा जाते हैं तोप के गोले, भेद नहीं सका कोई

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Feb 21 2017 11:11AM | Updated Date: Feb 21 2017 5:07PM
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राजस्थान के भरतपुर जिले में स्तिथ ‘लौहगढ़ के किले’ को भारत का एक मात्र अजेय दुर्ग कहा जाता है क्योंकि मिट्टी से बने इस किले को कभी कोई नहीं जीत पाया यहां तक की अंग्रेज भी नहीं जिन्होंने इस किले पर 13 बार अपनी तोपों के साथ आक्रमण किया था।
 
राजस्थान को मरुस्थालों का राजा कहा जाता है। यहां अनेक ऐसे स्थान हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इन्हीं में से एक है लौहगढ़ का किला।
 
इस किले का निर्माण 18वीं शताब्दी के आरंभ में जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया था। महाराजा सूरजमल ने ही भरतपुर रियासत बसाई थी।
 
उन्होंने एक ऐसे किले की कल्पना की जो बेहद मजबूत हो और कम पैसे में तैयार हो जाए। उस समय तोपों तथा बारूद का प्रचलन अत्यधिक था, इसलिए इस किले को बनाने में एक विशेष युक्ति का प्रयोग किया गया जिससे की बारूद के गोले भी दीवार पर बेअसर रहे।
 
तोप के गोले समा जाते थे दीवार के पेट में
यह राजस्थान के अन्य किलों के जितना विशाल नहीं है, लेकिन फिर भी इस किले को अजेय माना जाता है। इस किले की एक और खास बात यह है कि किले के चारों ओर मिट्टी के गारे की मोटी दीवार है। निर्माण के समय पहले किले की चौड़ी मजबूत पत्थर की ऊंची दीवार बनाई गई।
 
इन पर तोपो के गोलो का असर नहीं हो इसके लिए इन दीवारों के चारो ओर सैकड़ों फुट चौड़ी कच्ची मिट्टी की दीवार बनाई गई और नीचे गहरी और चौड़ी खाई बना कर उसमे पानी भरा गया। ऐसे में पानी को पार कर सपाट दीवार पर चढ़ना तो मुश्किल ही नही अस्म्भव था।
 
यही वजह है कि इस किले पर आक्रमण करना सहज नहीं था। क्योंकि तोप से निकले हुए गोले गारे की दीवार में धंस जाते और उनकी आग शांत हो जाती थी। ऐसी असंख्य गोले दागने के बावजूद इस किले की पत्थर की दीवार ज्यों की त्यों सुरक्षित बनी रही है। इसलिए दुश्मन इस किले के अंदर कभी प्रवेश नहीं कर सके।
 
राजस्थान का इतिहास लिखने वाले अंग्रेज इतिहासकार जेम्स टाड के अनुसार इस किले की सबसे बड़ी खासियत है कि इसकी दीवारें जो मिट्टी से बनी हुई हैं। इसके बावजूद इस किले को फतह करना लोहे के चने चबाने से कम नहीं था।
 
अंग्रेजों ने 13 बार किया किले पर हमला, फिर भी भेद नहीं सके
इस फौलादी किले को राजस्थान का पूर्व सिंहद्वार भी कहा जाता है। यहां जाट राजाओं की हुकूमत थी जो अपनी दृढ़ता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने इस किले को सुरक्षा प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ा।
 
दूसरी तरफ अंग्रेजों ने इस किले को अपने साम्राज्य में लेने के लिए 13 बार हमले किए। अंग्रेजी सेना तोप से गोले उगलती जा रही थी और वह गोले भरतपुर की मिट्टी के उस किले के पेट में समाते जा रहे थे।
 
13 आक्रमणों में एक बार भी वो इस किले को भेद न सके। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों की सेना बार-बार हारने से हताश हो गई तो वहां से भाग गई। ये भी कहावत है कि भरतपुर के जाटों की वीरता के आगे अंग्रेजों की एक न चली थी।
 
इस किले ने समय-समय पर दुश्मनों के दांत खट्टे किए
इस किले के दरवाजे की अपनी अलग खासियत है। अष्टधातु के जो दरवाजे अलाउद्दीन खिलजी पद्मिनी के चित्तौड़ से छीन कर ले गया था उसे भरतपुर के राजा महाराज जवाहर सिंह दिल्ली से उखाड़ कर ले आए। उसे इस किले में लगवाया। किले के बारे में रोचक बात यह भी है कि इसमें कहीं भी लोहे का एक अंश नहीं लगा।
 
यह अपनी अभेद्यता के बल पर लोहगढ़ के नाम से जाना गया। इस किले ने समय-समय पर दुश्मनों के दांत खट्टे किये और अपना लोहा मनवाने को शत्रु को मजबूर किया।
 
किले के एक कोने पर जवाहर बुर्ज है, जिसे जाट महाराज द्वारा दिल्ली पर किये गए हमले और उसकी विजय की स्मारक स्वरूप सन् 1765 में बनाया गया था। दूसरे कोने पर एक बुर्ज है  फतह बुर्ज जो सन् 1804 में अंग्रेजी के सेना के छक्के छुड़ाने और परास्त करने की यादगार है।
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