इटावा। महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़े उत्तर प्रदेश में यमुना नदी के किनारे मां काली का एक ऐसा मंदिर है जिसके बारे में जनश्रुति है कि इस मंदिर में महाभारत काल का अमर पात्र अश्वत्थामा अदृश्य रूप में आकर सबसे पहले पूजा करता है।
यह मंदिर इटावा मुख्यालय से मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है। इस मंदिर का नवरात्रि के मौके पर खासा महत्व हो जाता है। इस मंदिर में अपनी-अपनी मनोकामना को पूरा करने के इरादे से दूर दराज से भक्त गण आते हैं। कालीवाहन मंदिर के मुख्य महंत राधेश्याम द्विवेदी का कहना है कि काली वाहन नामक इस मंदिर का अपना एक अलग महत्व है। नवरात्रि के दिनों में तो इस मंदिर की महत्ता अपने आप में खास बन पड़ती है। उनका कहना है कि वे करीब 40 साल से इस मंदिर की सेवा कर रहे हैं लेकिन आज तक इस बात का पता नहीं लग सका है कि रात में मंदिर में की साफ सफाई कौन करत है और तड़के जब गर्भगृह खोला जाता है तो मंदिर के अंदर ताजे फूल मिलते हैं जो इस बात को साबित करता है कि कोई अदृश्य रूप में आकर मां की पूजा करता है।
अदृश्य रूप में पूजा करने वाले के बारे में कहा जाता है कि महाभारत के अमर पात्र अश्वत्थामा मंदिर में पूजा करने के लिये आते हैं। इस मंदिर की महत्ता के बारे में कर्मक्षेत्र स्रात्कोत्तर महाविद्यालय के इतिहास विभाग के अध्यक्ष डॉ. शैलेंद्र शर्मा का कहना है कि इतिहास में कोई भी घटना तब तक प्रमाणिक नहीं मानी जा सकती जब तक कि उसके पक्ष में पुरातात्विक, साहित्यिक, ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध न हो जाएं।
--डाकुओं के आस्था का केन्द काली वाहन मंदिर
शर्मा ने कहा कि जनश्रुतियों के अनुसार कतिपय बातें समाज में प्रचलित हो जातीं हैं यद्यपि महाभारत ऐतिहासिक ग्रन्थ है लेकिन उसके पात्र अश्वत्थामा का इटावा में काली मंदिर में आकर पूजा करने का कोई प्रत्यक्ष ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैै। कभी चंबल के खूंखार डाकुओं की आस्था का केंद्र रहे महाभारत कालीन सभ्यता से जुड़े इस मंदिर से डाकुओं का इतना लगाव रहा है कि वो अपने गैंग के डाकुओं के साथ आकर पूजा अर्चना करने में पुलिस की चौकसी के बावजूद कामयाब हुये लेकिन इस बात की पुष्टि तब हुई जब मंदिर में डाकुओं के नाम के घंटे और झंडे चढ़े हुये देखे गये। इस मंदिर में स्थित मूर्ति शिल्प 10वीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य का है। वर्तमान मंदिर का निर्माण बीसवीं शताब्दी की देन है।
--काला वाहन मंदिर की पौराणिक कथा
मार्कण्डेय पुराण एवं अन्य पौराणिक कथानकों के अनुसार दुर्गा जी प्रारम्भ में काली थीं। एक बार वे भगवान शिव के साथ आंिलगनबद्ध थीं, तो शिवजी ने परिहास करते हुए कहा कि ऐसा लगता है जैसे श्वेत चंदन वृक्ष में काली नागिन लिपटी हुई हो। पार्वती जी को क्रोध आ गया और उन्होंने तपस्या के द्वारा गौर वर्ण प्राप्त किया।
महाभारत में उल्लेख है कि दुर्गाजी ने जब महिषासुर तथा शुम्भ-निशुम्भ का वध कर दिया, तो उन्हें काली, कराली, कात्यायनी आदि नामों से भी पुकारा जाने लगा।