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मोदी सरकार का कार्यकाल मार्च 2019 में समाप्त हो रहा है। यानी 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं, लेकिन मोदी सरकार इसी साल के अंत में विधानसभा चुनावों के साथ ही लोकसभा चुनाव कराने का मूड बना चुकी है।

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jan 30 2018 11:30AM | Updated Date: Jan 30 2018 11:30AM
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विधानसभा के साथ ही इसी साल लोकसभा चुनाव की भी तैयारी
मोदी सरकार का कार्यकाल मार्च 2019 में समाप्त हो रहा है। यानी 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं, लेकिन मोदी सरकार इसी साल के अंत में विधानसभा चुनावों के साथ ही लोकसभा चुनाव कराने का मूड बना चुकी है।  इस बात की काफी हद तक पुष्टि सोमवार को बजट सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण से भी हो गई। 
बजट सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने पहले अभिभाषण में सरकार की पिछले पौने चार साल की उपलब्धियां गिनाते हुए लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने की वकालत की। उधर, सरकार भी लगातार कह रही है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होने चाहिए। सरकार चाहती है कि 2018 में कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ ही लोकसभा चुनाव करा लेने चाहिए।
यह कहा राष्ट्रपति ने
बजट सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति ने कहा कि  गवर्नेंस के प्रति सजग लोगों में, देश के किसी न किसी हिस्से में लगातार हो रहे चुनाव से पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को लेकर चिंता है।  ्नराष्टÑपति ने कहा कि बार-बार चुनाव होने से मानव संसाधन पर बोझ तो बढ़ता ही है, आचार संहिता लागू होने से देश की विकास प्रक्रिया भी बाधित होती है। इसलिए एक साथ चुनाव कराने के विषय पर चर्चा और संवाद बढ़ना चाहिए और सभी राजनीतिक दलों के बीच सहमति बनाई जानी चाहिए। राजनीतीक जानकारों की मानें तो राष्ट्रपति का अभिभाषण और सरकार से मिल रहे संकेतों से यह साफ दिख रहा है कि मोदी सरकार आम चुनाव 2018 के अंत तक करवाना चाहती है।  
लोकसभा चुनाव जल्द कराने के पीछे ये हैं कारण
इस साल मप्र सहित कई राज्यों में चुनाव
इस साल के अंत में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं।  जबकि  अगले साल 2019 में आंध्रप्रदेश, अरुणाचल, उड़ीसा, सिक्किम, महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और झारखंड में भी विधानसभा चुनाव होने हैं।  मोदी सरकार आम चुनाव इन सभी राज्यों के चुनाव के साथ करा सकती है। इनमें से ज्यादा जगह भाजपा या उसके सहयोगियों की सरकार है। सरकार को डर है कि अगर इन विधानसभा चुनावों का परिणाम नकारात्मक रहा तो लोकसभा चुनाव का परिणाम भी नकारात्मक देखने मिल सकता है।
आम बजट से लुभाएगी सरकार
वित्त मंत्री अरुण जेटली 1 फरवरी को आम बजट पेश करने जा रहे हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार का बजट लोकलुभावन रहेगा। सरकार इस साल के बजट में की गई घोषणाओं को हथियार बना कर चुनावी अखाड़े में उतरना चाहती है।  कमजोर विपक्ष का मिलेगा फायदा
आज की तारीख में विपक्ष कमजोर और अलग अलग है।  सरकार इसी बात का फायदा उठाना चाहती है।  राहुल गांधी का ग्राफ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है।  हाल ही में संपन्न गुजरात चुनाव में राहुल गांधी के लगातार दौरे से प्रधानमंत्री के गृहराज्य में भी भाजपा में बैचेनी का माहौल हो गया था। 
सरकार को सता रहा डर
सरकार को 4 साल होने वाले हैं लेकिन कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सत्ता में आने से पहले तो बड़े वादे किए गए थे लेकिन इन पर कोई काम नहीं किया गया। जिसमें किसान और रोजगार बड़े मुद्दे रहे हैं और इन्हीं मुद्दों को विपक्ष भी लगातार निशाना बनाता रहा है। 2014 के आम चुनावों में एनडीए ने बड़ी जीत हासिल की थी, लेकिन सरकार को अब यह डर सता रहा है कि उसे ऐसी जीत फिर हासिल नहीं होगी। 
कांग्रेस ने जताई नाखुशी
राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बजट सत्र के छोटा रहने पर नाखुशी जताई। उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है कि सरकार सिर्फ जैसे-तैसे बजट सत्र पूरा करना चाहती है और चुनाव के लिए जाना चाहती है। 
मीडिया में सक्रिय हुए पीएम
जल्दी चुनाव करवाने के पीछे  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अचानक मीडिया के प्रति उभरे प्यार को भी देखा जा रहा है।  पिछले पौने चार साल में मीडिया से दूरी बनाते दिखने वाले मोदी पिछले कुछ दिनों से लगातार इंटरव्यू देते नजर आ रहे हैं । 2014 के आम चुनाव से पहले भी मोदी ने कई इंटरव्यू दिए थे और उन्हें इसका फायदा भी मिला था।
2023 तक एक देश एक चुनाव
नीतीश कुमार ने लगातार कहा है कि वे लोकसभा चुनाव के साथ बिहार में विधानसभा चुनाव कराने को तैयार हैं। नीतीश कुमार इसके लिए तैयारी भी कर रहे हैं।
शिवसेना के साथ लगातार टकराव के बीच राज्य के सीएम देवेन्द्र फडणवीस ने भी संकेत दिया है कि वे साल के अंत में चुनाव कराने को तैयार हैं।
ओडिशा का टर्म हालांकि 2019 के मई-जून में पूरा होता है लेकिन नवीन पटनायक ने इस मुद्दे पर साफ कर दिया है कि अगर 6 महीने पहले चुनाव कराने को कहा जाता है तो वे  इसके लिए तैयार हैं।
चंद्रबाबू नायडू ने भी इसके लिए हरी झंडी दी है। इनका टर्म भी 2019 के मई में पूरा होता है।
नुकसान को फायदे में बदले की सोच
लोकसभा चुनाव के साथ जब राज्य विधानसभाओं के चुनाव होते हैं तो वोटर्स के बीच स्थानीय मुद्दे गौण हो जाते हैं, राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव केंद्रित हो जाता है। ऐसे में मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ भाजपा पर से सत्ताजनित नाराजगी का सामना करने का खतरा टल सकता है। 
आयोग ने किया तैयारी का दावा
एक साथ चुनाव कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर होगी और आयोग भी इस बहस में कूदते हुए पिछले दिनों संकेत दे चुका है कि वह साल के अंत में एक साथ चुनाव कराने को तैयार रहेगा। चुनाव आयोग ने कहा था कि 2018 सितंबर के बाद वह साथ चुनाव कराने को तैयार है। सरकार की इस कोशिश को जमीन पर उतारने के लिए राजनीतिक सहमति की भी जरूरत पड़ेगी जो इतना आसान नहीं होगा।
यह है नियम
संवैधानिक रूप से चुनाव की तय मियाद के छह महीने पहले तक चुनाव कराए जा सकते हैं और इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत नहीं पड़ेगी।  इससे पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने भी लोकसभा चुनाव समय से पहले करा लिए थे, लेकिन उस समय एनडीए की वापसी नहीं हो सकी थी।
 
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