गोरखपुर, कट्टर हिंदूवादी और उससे ज्यादा मुस्लिम विरोधी छवि है योगी आदित्यनाथ की. कभी वे मुस्लिमों को देश छोड़ कर जाने की चेतावनी देते हैं, तो कभी मुस्लिम लड़कियों के खिलाफ बोलते हैं. पर इसके उलट योगी आदित्यनाथ के गोरक्षपीठ का पूरा निर्माण एक मुस्लिम के जिम्मे है. गोरखपुर के इस हिंदूवादी नेता की रसोई के सुपरवाइजर भी यासीन अंसारी हैं. एक अंग्रेजी अखबार के अनुसार अंसारी खुद को आदित्यनाथ का दोस्त बताते हैं और कहते हैं -उनके मठ के कमरों में बड़े आराम से घूमता हूँ. अंसारी कहते हैं कि कई बार वो छोटे महाराज यानी आदित्यनाथ के साथ भोजन भी करते हैं. मंदिर से लगी कई दुकानें भी मुस्लिम चलाते हैं. योगी आदित्यनाथ एक महंत हैं और भगवा वस्त्र धारण कर राजनीति के रिये सामाजिक कार्यों को पूरा करते हैं, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि उनके मठ में सांप्रदायि़कता नहीं नजर आती. बताया यह भी जाता है कि पिछले 35 साल से गोरखनाथ मंदिर के अंदर होने वाला हर निर्माण कार्य अल्पसंख्यक समुदाय के ही व्यक्ति की निगरानी में होता आ रहा है. प्रबंधन का कामकाज संभालने वाले यासिन अंसारी मंदिर के खर्च का हिसाब-किताब रखते हैं. अंसारी ने बताया कि मेरे छोटे महाराज (मठ में योगी आदित्यनाथ को छोटे महाराज के नाम से पुकारा जाता है.) के साथ बेहद दोस्ताना संबंध हैं. जब भी वह यहां आते हैं, तो सबसे पहले मुझे याद करते हैं और काम के बारे में पूरी जानकारी लेते हैं. मैं उनके घर में आजादी से घूमता हूं. उनकी रसोई में जाता हूं. यहां तक कि उनके बेडरूम में भी जाता हूं और उनके साथ खाना भी खाता हूं. मंदिर के पास कई ऐसी दुकानें हैं, जो मुस्लिम चलाते हैं.बातचीत के दौरान अंसारी ने बताया कि मैंने कई बार योगी आदित्यनाथ को गरीबों की मदद करते देखा है. वह यह नहीं देखते कि समस्याग्रस्त व्यक्ति किस जाति, धर्म या संप्रदाय से ताल्लुक रखता है. छोटे महाराज शादी-समारोहों में भाग लेते हैं. मंदिर परिसर में एक दुकान चलाने वाली अल्पसंख्यक महिला अजीजुन्निसा ने बताया कि पिछले 35 साल से वह यहां दुकान चला रही हैं. उन्होंने कभी महसूस नहीं किया कि योगी ने किसी को सम्मान न दिया हो या भेदभावपूर्ण व्यवहार किया हो.वहीं, 20 साल से मंदिर परिसर में चूड़ियों की दुकान लगाने वाले मोहम्मद मुताकिम ने बताया कि मंदिर के अंदर दुकानों और अन्य कामों के जरिये कई मुस्लिम परिवार अपनी रोज़ी-रोटी कमाते हैं, उनमें किसी बात का भय नहीं. वहीं, यासिन अंसारी ने बताते हैं कि उनके पिता के बड़े भाई महंत दिग्विजयनाथ की पुरोहित बनने की विधि कार्यक्रम में शामिल हुए थे और मंदिर में रसोई की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गयी थी. उन्होंने बताया कि 1977-83 तक वह मंदिर के खजांची थे और 1984 से वह मंदिर के निर्माण कार्यों के सुपरवाइजर के तौर पर काम कर रहे हैं.