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जोधपुर में बेटे की उम्मीदवारी से गहलोत की प्रतिष्ठा दांव पर

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Apr 14 2019 11:19PM | Updated Date: Apr 14 2019 11:19PM
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जयपुर। जोधपुर लोकसभा संसदीय क्षेत्र में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव के कांग्रेस का उम्मीदवार बनने से अशोक गहलोत की  प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इस सीट पर 29 अप्रैल को मतदान होगा। यहां चुनाव मैदान में कांग्रेस के वैभव गहलोत और भाजपा के गजेंद्र सिंह शेखावत सहित कुल 11 प्रत्याशी हैं।  गजेंद्र सिंह शेखावत मोदी सरकार में कृषि राज्य मंत्री हैं, जबकि वैभव गहलोत डेढ़ दशक से प्रदेश कांग्रेस में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। भाजपा उम्मीदवार जहां मोदी लहर के भरोसे हैं जबकि वैभव के लिए मुख्यमंत्री पूरा दमखम लगा रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी के आरोपों का जवाब भी मुख्यमंत्री को देना पड़ रहा है।  अशोक गहलोत अपनी व्यस्तता के बीच समय निकालकर जोधपुर में वैभव के प्रचार पर पूरी नजर रख रहे हैं। इस लिहाज से गहलोत प्रचार का प्रमुख केंद्र बिन्दु बन  गए हैं। 
 
वह जोधपुर लोकसभा क्षेत्र से 1998 तक पांच बार सांसद चुने जा चुके हैं तथा स्थानीय स्तर पर सभी समाजों में उनकी पकड़ है। सांसद रहते हुए तथा बाद में मुख्यमंत्री बनने पर  गहलोत ने जोधपुर के विकास का पूरा ध्यान रखा तथा पेयजल समस्या का समाधान भी कराया। कई केंद्रीय कार्यालय भी जोधपुर में  खोले गए। कांग्रेस का इस बात पर ज्यादा जोर है कि लोग मुख्यमंत्री को ध्यान में रखकर मतदान करें ताकि वैभव के लिए यह सीट आसान हो जाए। कांग्रेस में एकता दिखाई दे रही है तथा माली, मेघवाल और मुस्लिम समाज का गठबंधन बना तो राह आसान हो सकती है। मौजूदा विधानसभा की बात करें तो जोधपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा क्षेत्रों में से छह पर कांग्रेस के विधायक हैं जबकि दो भाजपा के खाते में हैं। कांग्रेस के प्रत्याशियों को विधानसभा चुनाव में छह लाख 68 हजार 316 मत मिले जबकि भाजपा के प्रत्याशियों ने आठ विधानसभा क्षेत्रों में पांच लाख 55 हजार 769 मत प्राप्त किए। 
 
कांग्रेस की यह लहर लोकसभा चुनाव में बरकरार रहेगी या नहीं यह तो समय बताएगा, लेकिन नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री  बनाने के लिए भाजपा कार्यकर्ता भी कम जोर नहीं लगा रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी गजेंद्र सिंह शेखावत के मामले में भाजपा में एक राय नहीं लगती। विधानसभा चुनाव से पहले गजेंद्र सिंह को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष बनाने के प्रयास और विरोध के कारण पड़ी दरार अब तक नहीं पट पाई। यही कारण है कि  शेखावत के नामांकन के समय बड़े प्रादेशिक नेता नहीं पहुंचे। भाजपा के  टिकट पर दो बार सांसद रहे चुके जसवंत सिंह विश्नोई को कांग्रेस सरकार आने के बावजूद खादी बोर्ड के अध्यक्ष पद से नहीं हटाने से भी यह माना जा रहा है कि  उनकी सहानुभूति कांग्रेस की तरफ है। भाजपा नेतृत्व की पकड़ कमजोर होने के कारण जोधपुर के कई भाजपा कार्यकर्ता मुख्यमंत्री के करीब जाने के लिए कांग्रेस को मदद देने के लिए उतावले हैं। शुरुआती दौर में भाजपा में दिखाई दे रहा बिखराव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरों के बाद कम भी हो सकता है, लिहाजा उम्मीदवारों की मजबूती का सही आंकलन तभी हो पाएगा। जोधपुर संसदीय क्षेत्र में पूर्व राजघराने का भी असर रहा है। वर्ष 1951 के पहले चुनाव में पूर्व महाराजा हनुवंत सिंह ने कांग्रेस के नूरी मोहम्मद को हराकर  जीत हासिल की थी। बाद में एक दुर्घटना में उनकी मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में भी निर्दलीय जसवंत राज ने कांग्रेस के एन एम यासीन को जीत के पास फटकने  नहीं दिया।
 
कांग्रेस को इस सीट पर 1957 में तब जीत हासिल हुई जब जसवंत राज ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। वर्ष 1962 में विधिवेत्ता लक्ष्मीमल  सिंघवी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के नरेंद्र कुमार को हराया जो 1967 में कांग्रेस में आ गए तथा लक्ष्मीमल को हार का स्वाद चखाया। वर्ष 1971 में  राजघराने की कृष्ण कुमारी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के आनंद सिंह को धूल चटाई तथा 1977 की जनता लहर में कांग्रेस के पूनम चंद विश्नोई भारतीय लोकदल के रणछोड़दास गटानी से चुनाव हार बैठे। वर्ष 1980 में अशोक गहलोत ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता तथा 1984 में भी सांसद बने, लेकिन 1989 में भाजपा के दिग्गज नेता जसवंत सिंह से हार बैठे। इसके बाद अशोक गहलोत ने 1991 में भाजपा के रामनारायण विश्नोई को हराया तथा 1996 और 1998 में भी उन्हें जीत मिली। वर्ष 004 में भाजपा के  जसवंत सिंह विश्नोई ने कांग्रेस के बद्री जाखड़ को हराया। 2009 में कांग्रेस ने राजघराने की चंद्रेश कुमारी पर दांव खेलकर सफलता हासिल की, लेकिन वर्ष 2014  की मोदी लहर में वह भाजपा के गजेंद्र सिंह शेखावतके सामने नहीं टिक पाई।
 
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