पटना। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी ने संसद में पेश नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को संविधान की मूल आत्मा के विरुद्ध बताया और कहा कि इसके माध्यम से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS हिंदू राष्ट्र के एजेंडे को लागू करने की कोशिश कर रही है। भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि प्रबल विरोध के बावजूद केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक को संसद में पेश कर दिया है। आज देश की समस्त जनता इसका पुरजोर विरोध कर रही है। विरोध की आवाज को भाजपा अनसुना कर रही है और आरएसएस के हिन्दू राष्ट्र के एजेंडे को लागू कराने की कोशिश करा रही है।
इसके विरोध में पार्टी ने राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी), नागरिकता संशोधन विधेयक तथा देश में शिक्षा पर लगातार हो रहे हमले के खिलाफ 10 दिसंबर 2019 (मानवाधिकार दिवस) को बिहार में शिक्षा अधिकार-नागरिकता अधिकार मार्च आयोजित करने का निर्णय किया है कुणाल ने कहा कि सरकार कह रही है कि इसके जरिये पड़ोसी देशों से आये गैर मुस्लिम उत्पीड़ित शरणार्थी भारत की नागरिकता के लिए अब आवेदन कर सकेंगे। विधेयक में नागरिकता प्रदान करने का आधार धर्म और क्षेत्रीय पहचान को बनाया गया है।
यह देश के संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ है। इसका असली उद्देश्य भारतीय नागरिकता की परिभाषा में से मुसलमानों को बाहर करना है। भाकपा-माले नेता ने कहा कि एक ओर नागरिकता के अधिकार पर हमला है तो दूसरी ओर शिक्षा के अधिकार पर भी लगातार हमले किए जा रहे हैं। अपने पहले कार्यकाल से ही मोदी सरकार जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), दिल्ली और अन्य विश्वविद्यालयों को लगातार निशाना बना रही है। अभी हाल में जेएनयू में भारी फीस वृद्धि कर दी गई। इसके खिलाफ देश भर में व्यापक आंदोलन उठ खड़ा हुआ। कुणाल ने कहा कि आज पूरे देश में ‘सस्ती शिक्षा-सबका अधिकार’की मांग बुलंद हो रही है।
जेएनयू आंदोलन के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के एडहॉक शिक्षक भी पिछले कई दिनों से आंदोलन की राह पर हैं। उन्होंने कहा कि उन शिक्षकों को एक फरमान से सरकार ने हटा दिया है। यह उन शिक्षकों के साथ भद्दा मजाक नहीं तो और क्या है। भाकपा-माले नेता ने कहा कि मोदी सरकार अब देश में ‘जिओ’ जैसी यूनिवर्सिटी को स्थापित कर रही है। यही वजह है कि पहले से मौजूद शिक्षण संस्थानों और व्यवस्था को तहस-नहस किया जा रहा है।
सरकार शिक्षा के मामले में अपनी संवैधानिक जबावदेही से लगातार पीछे भाग रही है और उसे कॉर्पोरेट घरानों के हवाले कर रही है। यह सरकार नई शिक्षा नीति 2019 लेकर आई है। यदि यह लागू हो गया तो देश में कार्यरत अभी तकरीबन 50 हजार शैक्षणिक संस्थाओं की संख्या 12 हजार पर पहुंच जाएगी। इस नीति के जरिए शिक्षा में पूंजी को निर्बाध प्रवेश मिल जाएगा, इसलिए इसका देशव्यापी विरोध हो रहा है।