शामली। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 28 मई को होने वाले कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता का पैमाना तय करेगा वहीं इस उपचुनाव में विपक्षी एकता की भी अग्निपरीक्षा होगी। पिछले मार्च में फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त का सामना करना पडा था। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सहयोग से समाजवादी पार्टी (सपा) ने दोनों क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवारों को हार झेलने पर मजबूर कर दिया था। हार से बौखलायी भाजपा इस उपचुनाव में कोई खतरा मोल लेना नहीं चाहती और यही कारण है
कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस चुनाव में खुद प्रचार की कमान संभाली है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार कैराना और नूरपुर उपचुनाव के परिणाम अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरण तय करने में मदद करेंगे। दिलचस्प है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण रोकने के मकसद से विपक्ष ने कोई बडा नेता चुनाव प्रचार में नहीं उतारा है। विपक्ष की ओर से कैराना में राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) प्रत्याशी होने के बावजूद पार्टी के नेता बहुत कम जनसभायें करेंगे। संयुक्त विपक्ष के तौर पर नूरपुर विधानसभा क्षेत्र में किस्मत आजमा रही समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव प्रचार से दूरी बना रखी है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने नूरपुर और कैराना में चुनाव प्रचार नहीं करने का फैसला किया है।