कई पुरुषों का एक स्त्री से पेट नहीं भरता और अनेक स्त्रियों के कई पुरुषों से संबंध बनते हैं। हिंदू धर्म में एक पुरुष को अपनी पहली पत्नी के होते हुए दूसरे विवाह की अनुमति नहीं है। विवाह व्यक्ति के जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण पढाव है, जिससे उसके जीवन में कई नए रिश्तों का जन्म होता है। नवग्रहों में से बृहस्पति विवाह का कारक ग्रह माना जाता है। कई लोगो के जीवन में सम्बन्ध या विवाह का योग सिर्फ एक ही नहीं होता बल्कि एक से अधिक और कई बार अनेक होता है हर व्यक्ति की कुंडली में विवाह का निर्धारण उसकी कुंडली में विराजमान गृहों की दशा पर निर्भर करता है। कुंडली में गुरु के साथ अन्य ग्रहों की युति से विवाह की संख्या का पता लगाया जा सकता है। गृह ही व्यक्ति के जीवन में विवाह का कारक होते हैं। किसी व्यक्ति की कुंडली में एक से अधिक विवाह के योग हो सकते हैं। एक से अधिक विवाह को बहु विवाह योग भी कहा जाता है। तो आइये जानते हैं व्यक्ति की कुंडली में बहु विवाह योग कौन सी गृह दशा के कारण बनता है।
1. जिस व्यक्ति की कुंडली में चन्द्र और शुक्र एक ही भाव में स्थित होते हैं और उन भावों में उनकी स्थिति मजबूत होती है, तो ऐसे व्यक्तियों का एक से अधिक विवाह होता है।
2. व्यक्ति की कुंडली का लग्नेश उच्च या स्वराशिगत केंद्र भाव में विराजमान होता है, तो ऐसे व्यक्तियों की एक से अधिक पत्नियां होती हैं।
3. जब किसी व्यक्ति की कुंडली का लग्न एक उच्च गृह राशि में स्थित होता है, तो इन व्यक्तियों के भी एक से अधिक विवाह होते हैं।
4. जब व्यक्ति की कुंडली में लग्नेश और चतुर्थ भाव का स्वामी केंद्रीय भाव में स्थित होता है, तो यह व्यक्तियों के एक से अधिक विवाह का योग बनाते हैं।
5. जब किसी व्यक्ति की कुंडली में सप्तमेश भाव में शनि विराजमान होता है और वह किसी पाप गृह से युक्त होता है, तो ऐसे व्यक्ति के एक से अधिक विवाह होते हैं।