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Astrology

क्यों करते हैं भगवान गणेश का विसर्जन - जानें ये रहस्य

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Sep 8 2019 10:35AM | Updated Date: Sep 8 2019 10:36AM
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देशभर में इन दिनों गणपति का त्‍यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। गणेश चतुर्थी के दिन भगवान श्रीगणेश का आगमन होता है और अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश भगवान का विसर्चन किया जाता है। कहा जाता है कि गणेश चतुर्थी का त्योहार मन और लगन के साथ मनाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है, इसलिए हर शुभ काम करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
 
इस तरह हर साल गणेश उत्सव 10 दिनों का होता है लेकिन जो लोग 10 दिनों तक विधि विधान से गणेशजी की पूजा कर पाने में असमर्थ होते हैं वह बीच में भी गणपति विसर्जन कर लेते हैं। लेकिन क्‍यों आपकों पता है भगवान गणेश का विसर्जन क्‍यों किया जाता है। वैसे भी हिंदू धर्म में मूर्ति विसर्जन की पुरानी परंपरा है। इसके पीछे कई रहस्य होते है।
 
हालांकि प्रतिमा को केवल एक व्यक्ति बनाता है, लेकिन इसके पीछे कई लोगों की मेहनत होती है। प्रतिमा को बनाने में इस्तेमाल होने वाली मिट्टी की खुदाई मछुआरा करता है और कुम्हार इस मूर्ति को आकार देता है। पुजारी इसे पूजते हैं।
 
विसर्जन के पीछे छिपा रहस्य
गणेश की प्रतिमा बड़े प्यार से बनाई जाती है। यही प्यार और भक्ति इस मिट्टी की प्रतिमा को एक आध्यात्मिक शक्ति का आकार देती हैं। समय आने पर, इसे फिर प्रकृति को लौटा दिया जाता है। गणेश चतुर्थी के दौरान, हम मूर्ति में भगवान गणेश के आध्यात्मिक रूप को आमंत्रित करते हैं और अवधि समाप्त होने पर हम आदर से प्रभु से मूर्ति को छो़ड़ने की विनती करते हैं ताकि हम मूर्ति को पानी में विसर्जित कर सकें। इससे हमें पता चलता है कि भगवान निराकार है।
 
जीवन चक्र से जुड़ा
अतः हम उनके दर्शन पाने, भजन सुनने और स्पर्श पाने के लिए और पूजा में चढ़ाएं जाने वाले फूलों की मोहक और प्रसाद पाने के लिए उन्हें एक आकार देते हैं। विसर्जन की रीत, हमारे जीवन-मृत्यु के चक्र की प्रतीक है। गणेश की मूर्ति बनाई जाती है, उसकी पूजा की जाती है एवं फिर उसे अगले साल वापस पाने के लिए प्रकृति को सौंप दिया जाता है। इसी तरह, हम भी इस संसार में आते हैं अपने जीवन की जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं।
 
समय समाप्त होने पर मृत्यु को प्राप्त कर अगले जन्म में एक नए रूप में प्रवेश करते हैं। विसर्जन हमें तटस्थता के पाठ को सिखाता है। इस जीवन में मनुष्य को कई चीज़ों से लगाव हो जाता है और वो माया के जाल में फंस जाता है, लेकिन जब मृत्यु आती है तब हमें इन सारे बंधनों को तोड़ कर जाना पड़ता है।
 
गणपति बप्पा भी हमारे घर में स्थान ग्रहण करते हैं और हमें उनसे लगाव हो जाता है। परंतु समय पूरा होते ही हमें उन्हें विसर्जित करना पड़ता है। इस तरह हमें इस बात को समझना होगा कि हम जिन्हें जिंदगी भर अपना समझते हैं। असल में वो हमारी होती ही नहीं हैं। विसर्जन हमें यह सिखाता है कि सांसारिक वस्तुएं और लौकिक सुख केवल शरीर को तृप्त करते हैं ना कि आत्मा को।
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