भगवान गणेश के जन्म दिन के उत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। शास्त्र सम्मति है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को अग्र पूज्य देव भगवान श्री गणेश का मध्यान काल में जन्म हुआ था । इसी उपलक्ष्य में गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक 10 दिवसीय गणेश पूजन का विधान है । भगवान गणेश विघ्नहर्ता एवं विध्नकर्ता दोनों ही माने गए हैं। अपने साधको एवं भक्तों के लिए विघ्न विनाशक तो दुष्टों के लिए विधनकर्ता माने गए हैं।
गणेशोत्सव अर्थात गणेश चतुर्थी का उत्सव, १० दिन के बाद, अनन्त चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है और यह दिन गणेश विसर्जन के नाम से जाना जाता है।
गणेश चतुर्थी के दिन, गणेश स्थापना और गणेश पूजा, मध्याह्न के दौरान की जानी चाहिये। मध्याह्न मुहूर्त में, विधि-विधान से गणेश पूजा की जानी चाहिए, जिसे षोडशोपचार गणपति पूजा के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष गणेश उत्सव 2 सितम्बर से प्रारंभ होकर 12 सितंबर अनन्त चतुर्दशी तक चलेगा।
ऐसे करें गणपति स्थापना
इन 10 दिनों में गणपति की विशेष पूजा करते हुए उनसे वर्ष पर्यंत विघ्न बाधाओं से मुक्ति की कामना की प्रार्थना करनी चाहिए। गणेश का प्रकट मध्यान काल में हुआ था अतः भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्यान काल में श्री गणपति उत्सव प्रारंभ किया जाना चाहिए। गणेश जी की पूजा से विध्न एवं अवरोध का नाश होता है तथा जीवन में ज्ञान एवं बुद्धि का विस्तार।
सर्वप्रथम गणपति पूजा का संकल्प लेते हुए चतुर्थी के दिन मध्यान काल में गणपति पूजा एवं स्थापना करें। गणपति प्रतिमा को दक्षिण मुखी अथवा पूर्व मुखी स्थापित करना उचित माना गया है।गणपति को अत्यंत प्रिय सिंदूर सर्वप्रथम उनकी प्रतिमा पर अर्पित किया जाये। तत्पश्चात प्रतिमा का पंचोपचार पूजन करते हुए उन्हें लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए। घंटा, शंख, घड़ियाल आदि की ध्वनि के साथ गणपति आरती की जानी चाहिए। तत्पश्चात नियमित रुप से 10 दिनों में गणपति सहस्रनाम, गणपति अथर्वशीर्ष,या गणपति मंत्र इत्यादिका जाप करना चाहिये।
ज्योतिर्विद राजेश साहनी