केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। हिमालय पर्वत की गोद में बना हुआ केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित है। साथ ही चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। केदारनाथ उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है।
मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है। इसका गर्भगृह प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है । केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड।
केदारनाथ मंदिर न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है। यहां-मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी नामक नदियां बहती हैं। हालांकि इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। केदारनाथ जयोतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है । केदारनाथ मंदिर के किनारे मे केदारेश्वर धाम स्थित है।
पत्थरो से बने कत्य्रुई शैली से बने केदारनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंश के जन्मेजय ने कराया था। लेकिन ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदिगुरू शंकराचार्य ने की। केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते है।
केदारनाथ मंदिर में शिव बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजे जाते है । शिव की भूजाए तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदम्देश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए । इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।
केदारनाथ मंदिर के ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास
हिमालय के केदार पर्वत पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं।
पंचकेदार (केदारनाथ) की कथा
ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या अर्थात (परिवार वालो की हत्या) के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे। लेकिन भगवान शंकर पांडवो से गुस्सा थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए , पर भगवान शंकर पांडवो को वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण करके अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था कि भगवान शंकर इन पशुओ के झुण्ड में उपस्थित है। तभी भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए।
अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल का रूप धारण कर पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। तब भीम पूरी ताकत से बैल पर झपटे , लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान करने लगा। तब भीम ने बैल का पीठ का भाग पकड़ लिया। और भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तुरंत दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ धाम में पूजे जाते हैं।