19 Apr 2024, 14:35:36 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने आरक्षण को लेकर उत्पन्न ताजा विवाद के बीच आज स्पष्ट किया कि उसका 'पक्का स्टैंड' यह है कि जब तक देश में जाति और जन्म आधारित असमानता रहेगी तब तक आरक्षण की सुविधा रहनी चाहिए। आरएसएस के सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने आज यहां एक वक्तव्य में कहा कि आरक्षण को लेकर अनावश्यक विवाद पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है जबकि संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने 1991 में ही आरक्षण को लेकर एक प्रस्ताव में अपना पक्का स्टैंड साफ कर दिया

था। होसबोले ने कहा फिर आरक्षण विषय पर विवाद खड़ा करने का प्रयास हुआ है संघ ने  हमेशा यह प्रयास किए हैं कि  संविधान प्रदत्त आरक्षण जारी रहना चाहिए। संविधान में अनुसूचित जनजाति(एसटी),अनुसूचित जाति (एससी) तथा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण प्रावधान है। इन सभी वर्गों को आरक्षण का पूरा पूरा लाभ मिले इसके लिए  संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने 1991 में प्रस्ताव पास किया था।

होसबोले ने कहा प्रस्ताव में स्पष्ट कहा था कि एसटी, एससी और ओबीसी को आरक्षण के प्रावधान का पूरा लाभ मिले इसके प्रयास होते रहना चाहिए। संघ के पदाधिकारी के नाते मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि विवाद अनावश्यक पैदा करने का प्रयास किया गया है जब तक देश में जाति और जन्म आधारित असमानता रहेगी तब तक आरक्षण की सुविधा रहनी चाहिए।

संघ सहसरकार्यवाह ने कहा यह वाक्य मैंने साहित्य उत्सव में भी कहा था और यही आरएसएस का पक्का स्टैंड है। उन्होंने कहा कि इस विषय में विवाद उत्पन्न करने का प्रयास हुआ है। इसलिए एक बार फिर से यह बताना पड़ रहा है। डॉक्टर मनमोहन वैद्य ने भी इसी विषय को कहा था। होसबोले ने अपील की कि संघ को लेकर विवाद उत्पन्न करने का प्रयास नहीं करें। इससे सामाजिक तनाव पैदा करने की स्थिति बनती है।

डॉ. वैद्य ने सफाई दी कि जयपुर साहित्य उत्सव में आरक्षण को लेकर उनसे दो प्रश्न पूछे गए थे जिनमें आरक्षण को लेकर उन्होंने कहा था कि देश में सभी वर्गा के सभी प्रकार के लोगों को समान शिक्षा नहीं मिल पा रही है और सामाजिक आर्थिक विषमतायें विद्यमान हैं इसलिये संविधान में प्रदत्त आरक्षण की व्यवस्था मिलनी चाहिए। जबकि दूसरे प्रश्न में मुसलमानों को आरक्षण के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि धार्मिक आधार पर आरक्षण समाज में विभाजन पैदा करेगा और उच्चतम न्यायालय ने भी अनेक बार धार्मिक आधार पर आरक्षण को अनुचित बताया है। 

 
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