नई दिल्ली। रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया (आरबीआई) द्वारा हाल ही में जारी हुई वार्षिक रिपोर्ट 2017-18 ने इस बात का खुलासा किया है कि पिछले कुछ सालों में डिजिटल ट्रांजेक्शन्स की अहमियत/मूल्य के साथ-साथ करंसी का सकुर्लेशन बढ़ा है। वित्तीय वर्ष 2016 में 16.63 लाख करोड़ तथा वित्तीय वर्ष 2017 में 13.35 लाख करोड़ की तुलना में यह बढ़ोत्तरी वित्तीय वर्ष 2018 में 18.29 लाख करोड़ तक पहुंच गई। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि कैशलेस इंडिया के लिए डिजिटल पेमेंट्स को बढ़ावा देने के सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद देश अधिकांशत: कैश यानी नकद लेनदेन पर ही निर्भर करती है।
इस प्रक्रिया को सक्षम बनाने के लिए वित्त मंत्रालय हाल ही में एक निर्देश लेकर आया है, जिसमें बैंकों को नियर-फील्ड कम्युनिकेशन (एनएफसी) सक्षम कॉन्टैक्टलेस क्रेडिट और डेबिट कार्ड्स जारी करने की सलाह दी गई है। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, कॉन्टैक्टलेस पेमेंट कार्ड्स यूजर को पीओएस (पॉइंट आॅफ सेल) टर्मिनल पर मात्र टैप करने भर से भुगतान करने की सुविधा देता है। इससे भुगतान करने की प्रक्रिया पहले से कहीं ज्यादा तेज हो जाती है, कॉन्टैक्टलेस कार्ड के साथ लेनदेन करने में तीन सेकेण्ड या इससे भी कम का समय लगता है।
टी आर रामचंद्रन, ग्रुप कंट्री मैनेजर, इंडिया और साऊथ एशिया, वीसा के अनुसार आज जबकि लोगों के पास डिजिटल पेमेंट प्रक्रियाओं में से चुनने के लिए ढेर सारे विकल्प हैं, इनमें से अधिकांश सिस्टम्स लोगों को झंझट से मुक्त भुगतान अनुभव देने में नाकाम रहने से लोग वापस नकद भुगतान की ओर रुख कर लेते हैं। ऐसे में भुगतान को महज एक टैप जितना आसान करके, जो कि न केवल झंझट से मुक्त है बल्कि बहुत तेज और सुरक्षित होने के साथ ही कैश के इस्तेमाल जितना ही सहज भी है, कॉन्टैक्टलेस कार्ड्स ग्राहकों के बीच स्थाई रूप से जगह बना सकते हैं।