नई दिल्ली। भारतीय बैंकिंग तंत्र की सकल गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के चालू वित्त वर्ष के अंत तक घटकर 9.1 लाख करोड़ रुपये पर आने का अनुमान है जो इस वर्ष मार्च में 9.4 लाख करोड़ रुपये पर था। उद्योग संगठन एसोचैम और क्रिसिल द्वारा किये गये एक संयुक्त अध्ययन की रिपोर्ट में यह अनुमान जताया गया है। इसमें कहा गया है कि एनपीए में कॉर्पोरेट क्षेत्र की भागीदारी 70 प्रतिशत है जो संपदा पुनर्गठन कंपनियों के लिए बहुत बड़ा अवसर है। इसमें कहा गया है कि तनावग्रस्त संपदा के निवेश करने वालों के लिए भी बहुत बड़ा अवसर है क्योंकि इस वर्ष मार्च में सकल एनपीए 9.4 लाख करोड़ रुपये पर था। रिपोर्ट के मुताबिक, बड़े कर्जदारों पर 5.4 लाख करोड़ रुपये का एनपीए है। इसमें से राष्ट्रीय कंपनी लॉ न्यायाधिकरण की दो सूचियों में 2.1 लाख करोड़ रुपये का एनपीए शामिल है।
इसके अतिरिक्त दो लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त एनपीए भी है। इसमें कहा गया है कि इसके अतिरिक्त 1.3 लाख करोड़ रुपये के संपदा के भी तनावग्रस्त होने का अनुमान है जिसे अब तक एनपीए की श्रेणी में नहीं रखा गया है। इन संपदा के मध्यावधि में एनपीए में जाने की बहुत अधिक आशंका है। रिपोर्ट के अनुसार, एनपीए में पावर, इंफ्रास्ट्रक्चर और स्टील क्षेत्र की हिस्सेदारी 4.1 लाख करोड़ रुपये है। पावर क्षेत्र में हिस्सेदारी सबसे अधिक है और इस क्षेत्र में एनपीए के निपटान की संभावना भी बहुत कम है। इसमें कहा गया है कि संशोधित तनावग्रस्त संपदा फ्रेमवर्क से तनावग्रस्त पावर क्षेत्र को लाभ होने की उम्मीद है क्योंकि जो परियोजनायें चालू स्थिति में हैं और शोधन के लिए आईबीसी को भेजे जाने लायक हैं वे 31 मार्च 2019 तक एक लाख करोड़ रुपये के थे।