23 Apr 2024, 12:43:14 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android
Business

ऑटो के बाद अब कताई उद्योग भी संकट में, जा सकती हैं हजारों नौकरियां

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Aug 21 2019 12:56PM | Updated Date: Aug 21 2019 12:57PM
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

नई दिल्ली। मंदी की मार देश के कताई उद्योग तक पहुंच गई है। कताई उद्योग मंदी के अब तक के सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है। देश की तकरीबन एक-तिहाई कताई उत्पादन क्षमता बंद हो चुकी है और जो मिलें चल रही हैं, उन्हें भी भारी घाटा उठाना पड़ रहा हैं। यदि यह संकट दूर नहीं हुआ तो हजारों लोगों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ सकता हैं। कॉटन और ब्लेंड्स स्पाइनिंग इंडस्ट्री के संकट से गुजरने का वह दौर है जैसा कि 2010-11 में नज़र आया था।
 
नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन के मुताबिक राज्य और केंद्रीय जीएसटी और अन्य करों के कारण भारतीय यार्न वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा के लायक नहीं रह गया है। अप्रैल से जून की तिमाही में कॉटन यार्न के निर्यात में साल-दर-साल 34.6 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। जून में तो इसमें 50 प्रतिशत तक की कमी आ चुकी है। अब कताई मिलें इस हालात में नहीं हैं कि भारतीय कपास खरीद सकें। यही हालत रही है तो अगले सीजन में बाजार में आने वाले करीब 80,000 करोड़ रुपये के 4 करोड़ गांठ कपास का कोई खरीदार नहीं मिलेगा।
 
गौरतलब है कि भारतीय टेक्सटाइल इंडस्ट्री में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 10 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है. यह एग्रीकल्चर के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला सेक्टर है। ऐसे में बड़े पैमाने पर लोगों के बेरोजगार होने की आशंका है। इसलिए नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि तत्काल कोई कदम उठाकर नौकरियां जानें से बचाएं और इस इंडस्ट्री को गैर निष्पादित संपत्त‍ि (NPA) बनने से रोकें।
 
यह उद्योग कर्ज पर ऊंची ब्याज दर, कच्चे माल की ऊंची लागत, कपड़ों और यार्न के सस्ते आयात जैसी कई समस्याओं से तबाह हो रहा है। भारतीय मिलों को ऊंचे कच्चे माल की वजह से प्रति किलो 20 से 25 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके अलावा श्रीलंका, बांग्लादेश, इंडोनेशिया जैसे  देशों के सस्ते कपड़ा आयात की दोहरी मार पड़ रही है। गौरतलब है कि नौकरी पिछले कई साल से देश के लोगों की सबसे बड़ी चिंता बनी हुई है।
 
आजतक-कार्वी इनसाइट्स द्वारा किए गए 'देश का मिजाज' सर्वे में शामिल ज्यादातर लोगों के लिए पिछले पांच साल की तरह इस साल भी यह चिंता की बात रही है। सर्वे में शामिल 35 फीसदी लोगों ने इसे सबसे बड़ी चिंता बताई है। रोजगार के मोर्चे पर मोदी सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर रही है। तमाम आकंड़े पेश कर विपक्ष ने यह बताने की कोशि‍श की है कि मोदी सरकार रोजगार के मोर्चे अपने लक्ष्य को हासिल करने में नाकाम रही है।
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »