नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक के बागी विधायकों के इस्तीफे के बारे में विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश देने संबंधी याचिका पर मंगलवार को फैसला सुरक्षित कर लिया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायामूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने सभी सम्बद्ध पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया। खंडपीठ बुधवार को पूर्वाह्न साढ़े 10 बजे आदेश सुनायेगी कि क्या शीर्ष अदालत विधायकों के इस्तीफे को निर्धारित अवधि में मंजूर करने का अध्यक्ष को निर्देश दे सकती है या नहीं। न्यायालय को यह तय करना है कि जिन विधायकों के खिलाफ अयोग्य ठहराये जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, उसके बाद वह अध्यक्ष को इस्तीफे पर फैसला लेने का आदेश दे सकता है या नहीं।
बागी विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किये जाने को चुनौती दी है। याचिकाकर्ता बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने खंडपीठ के समक्ष दलील दी कि सभी 10 याचिकाकर्ताओं ने गत 10 जुलाई को इस्तीफा दे दिया है और उनमें से केवल दो को अयोग्य घोषित करने की कार्यवाही के लिए नोटिस जारी किये गये हैं। उन्होंने दलील दी कि जिन दो विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने की प्रक्रिया शुरू की गयी है, उनमें से एक-उमेश जाधव का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया है, जबकि अन्य के लिए दोहरा मानदंड क्यों अपनाया जा रहा है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 190 का हवाला देते हुए दलील दी कि यदि कोई विधायक इस्तीफा देता है तो उसे मंजूर किया जाना चाहिए, भले ही उसके खिलाफ अयोग्य ठहराये जाने की प्रक्रिया शुरू क्यों नहीं की गयी हो?
उन्होंने कहा,‘‘ मैं (याचिकाकर्ता) यह नहीं कहता कि हमारे खिलाफ अयोग्य ठहराये जाने की प्रक्रिया निरस्त की जाये, बल्कि यह प्रक्रिया जारी रहे, लेकिन इस्तीफे को दबाकर नहीं बैठा जाये।’’ रोहतगी ने कहा कि विधायकों का कहना है, ‘‘ मैं विधायक बने रहना नहीं चाहता। मैं दल-बदल नहीं करना चाहता। मैं जनता के समक्ष फिर से जाना चाहता हूं। मुझे वह करने का अधिकार है, जो मैं चाहता हूं। विधानसभा अध्यक्ष हमारे इन अधिकारों का हनन कर रहे हैं।’’ इस्तीफा देने वाले विधायकों की संख्या कम करने के बाद सरकार की अस्थिरता का उल्लेख करते हुए रोहतगी ने कहा,‘‘ इस अदालत के समक्ष याचिका दायर करने वाले विधायकों की संख्या कम कर दी जाये तो सरकार गिर जाना तय है। इसलिए अध्यक्ष जान-बूझकर इस्तीफा स्वीकार नहीं कर रहे हैं।’’
मुख्य न्यायाधीश ने रोहतगी से पूछा कि अयोग्य ठहराये जाने की प्रक्रिया का आधार क्या है? इस पर पूर्व एटर्नी जनरल ने कहा, ‘‘क्योंकि याचिकाकर्ता पार्टी के साथ तालमेल करके नहीं चल रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि इस्तीफे के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन जब यह स्वेच्छा से दिया जाये तो अध्यक्ष इसे लंबित नहीं रख सकते। विधानसभा अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि अयोग्य ठहराये जाने की कार्रवाई पहले ही शुरू हो चुकी है और अध्यक्ष पहले उस पर निर्णय करेंगे। उन्होंने दलील दी कि इस्तीफा देकर अयोग्यता की कार्रवाई से बचा नहीं जा सकता। इस पर न्यायमूर्ति गोगोई ने सिंघवी से पूछा कि यदि विधायकों ने इस्तीफा स्वेच्छा से दिया है और वे 11 जुलाई को अध्यक्ष के समक्ष पेश भी हुए, ऐसी स्थिति में अब इस्तीफा स्वीकार करने से अध्यक्ष को कौन रोक रहा है। इसके बाद सिंघवी ने शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि वह अपने 12 जुलाई के आदेश में सुधार करे, ताकि अध्यक्ष कल तक इस्तीफे और अयोग्यता प्रक्रिया पर निर्णय ले सकें। उन्होंने न्यायालय से यह भी अनुरोध किया कि वह अध्यक्ष को कोई विशेष दिशानिर्देश वाला आदेश जारी करने से परहेज करें।