माले। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मालदीव की यात्रा पर गए थे। उनकी इस यात्रा के बाद अब माले से खबर आ रही है कि मालदीव, चीन के साथ साल 2017 में हुई विवादित हिंद महासागर वेधशाला (ऑब्जरवेटरी) डील को खत्म करने की तैयारी कर चुका है। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल में चीन के साथ यह डील साइन हुई थी। यामीन को चीन का करीबी माना जाता था। इंग्लिश डेली टाइम्स ऑफ इंडिया की ओर से यह जानकारी दी गई है।
चीन कर सकता था जासूसी- पिछले वर्ष मालदीव में नई सरकार आई है और इब्राहीम सोलेह ने जिम्मा संभाला है। इस नई सरकार के आने के बाद से भारत और मालदीव के रिश्ते बेहतर होने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। नवंबर माह में जब सोलेह सरकार में आए तो उन्होंने पीएम मोदी को शपथ ग्रहण में आने का निमंत्रण दिया। इस निमंत्रण के बाद पीएम मोदी पहली बार 17 नवंबर 2018 को मालदीव गए। सरकार के एक टॉप ऑफिसर ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया है कि यामीन के कार्यकाल में जो समझौता साइन हुआ था, वह अब अस्तित्व में नहीं है। इस एग्रीमेंट को 'प्रोटोकॉल ऑन इस्टैब्लिशमेंट ऑफ ज्वॉइन्ट ओशिन ऑब्जर्वेशन स्टेशन' नाम दिया गया था। इस डील के बाद चीन को हिंद महासागर में स्थित मुकुंधु एक ऑब्जरवेटरी तैयार करने की मंजूरी मिल गई थी। यह जगह मालदीव के पश्चिम में स्थित है। डील भारत को अलर्ट करने वाली थी।
मालदीव ने दिया था गोल-मोल जवाब- भारत इस बात से चिंतित था कि इस ऑब्जरवेटरी के बाद चीन, हिंद महासागर से गुजरने वाले हर व्यापारी और नौसेना के जहाज पर अपनी नजर रखेगा। भारत ने इस पूरे मामले पर मालदीव से स्पष्टीकरण भी मांगा था। मालदीव ने तब कहा था कि चीन यहां पर सिर्फ एक मौसम पर नजर रखने वाला एक सेंटर बनाने जा रहा है। मालदीव की सरकार ने उस डील को सार्वजनिक नहीं किया था और चीन को स्पष्टीकरण देना पड़ा था कि इस ऑब्जरवेटरी को किसी भी तरह से मिलिट्री मकसद के लिए प्रयोग नहीं किया जाएगा। पीएम मोदी जब हाल ही में मालदीव के दौरे पर थे तो उन्होंने साफ कर दिया था कि भारत और मालदीव को क्षेत्र में तटीय सुरक्षा के लिए मिलकर काम करना चाहिए।