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राफेल सौदे की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होगी या नहीं, फैसला आज

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Dec 14 2018 10:48AM | Updated Date: Dec 14 2018 10:48AM
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नई दिल्ली। फ्रांस के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के बहुचर्चित सौदे में कथित भ्रष्टाचार की कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग वाली याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला आने वाला है। सीजेआई रंजन गोगोई की अगुआई वाली बेंच ने 14 नवंबर मैराथन सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
 
राफेल डील की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग को लेकर ऐडवोकेट एम. एल. शर्मा और विनीत ढांडा ने अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की थी। बाद में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने भी ऐसी ही याचिका डाली। एक संयुक्त याचिका पूर्व केंद्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी व सीनियर ऐडवोकेट प्रशांत भूषण ने दाखिल की थी। 
 
भारत और फ्रांस ने 36 राफेल विमानों की खरीद के लिए 23 सितंबर, 2016 को 7.87 अरब यूरो (लगभग 59,000 करोड़ रुपये) के सौदे पर हस्ताक्षर किए। सौदा दोनों देशों की सरकारों के बीच हुआ है। भारतीय एयर फोर्स के अपग्रेडेशन के प्लान के तहत यह डील हुई है। इन जेट्स को फ्रांस की दसॉ कंपनी ने तैयार किया है।
 
विमान की आपूर्ति सितंबर 2019 से शुरू होगी। इस सौदे की जमीन अप्रैल 2015 में पीएम मोदी के फ्रांस दौरे पर तैयार हुई थी। 10 अप्रैल 2015 को पीएम मोदी और तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने संयुक्त बयान जारी कर बताया था कि दोनों सरकारें 36 राफेल लड़ाकू विमानों की आपूर्ति के सौदे के लिए सहमत हैं। 
 
राफेल डील में विमानों की कथित तौर पर बहुत ज्यादा बढ़ी हुई कीमत, सरकारी कंपनी HAL को सौदे से बाहर रखे जाने, अनिल अंबानी की कंपनी को दसॉ द्वारा ऑफसेट पार्टनर बनाए जाने और सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समति की बिना मंजूरी के ही प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सौदे के ऐलान जैसे मुद्दों को लेकर विवाद है। राफेल डील को लेकर मुख्य विपक्षी कांग्रेस काफी हमलावर है और मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है। सौदे के विवादों में घिरने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था।
 
कांग्रेस इस सौदे में भारी अनियमितताओं का आरोप लगा रही है। उसका कहना है कि सरकार प्रत्येक विमान 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है जबकि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने प्रति विमान 526 करोड़ रुपये कीमत तय की थी। पार्टी ने सरकार से जवाब मांगा है कि क्यों सरकारी ऐरोस्पेस कंपनी HAL को इस सौदे में शामिल नहीं किया गया। 
 
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का यह भी आरोप है कि दसॉ ने मोदी सरकार के दबाव में अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट पार्टनर चुना, जबकि उसके पास इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं है। उन्होंने दसॉ सीईओ पर झूठ बोलने का भी आरोप लगाया है। दूसरी तरफ दसॉ, फ्रांस और मोदी सरकार ने गांधी के आरोपों को खारिज किया है। 
 
ऑफसेट क्लॉज के मुताबिक दसॉ को सौदे के बदले में उसकी कुल राशि की आधी रकम के बराबर भारत में निवेश करना है। चूंकि, 36 विमानों की खरीद का सौदा 59,000 करोड़ रुपये का है। लिहाजा दसॉ को भारतीय कंपनियों में इसके आधे यानी करीब 30,000 करोड़ रुपये के बराबर निवेश करना है। दसॉ ने ऑफसेट पार्टनर के तौर पर रिलायंस डिफेंस समेत कई भारतीय कंपनियों को चुना है। ये कंपनियां दसॉ के लिए विमानों के पार्ट्स बनाएंगे। 
 
भारत ने 2007 में 126 मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) को खरीदने की प्रक्रिया शुरू की थी। यूपीए सरकार के दौरान राफेल खरीद सौदा नहीं हो पाया था और उस समय सौदे को लेकर दोनों पक्षों में बातचीत ही चलती रही। तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने भारतीय वायु सेना से प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी। इस बड़े सौदे के दावेदारों में लॉकहीड मार्टिन के एफ-16, यूरोफाइटर टाइफून, रूस के मिग-35, स्वीडन के ग्रिपेन, बोइंग का एफ/ए-18 एस और दसॉ एविएशन का राफेल शामिल था। 
 
लंबी प्रक्रिया के बाद दिसंबर 2012 में बोली लगाई गई। दसॉ एविएशन सबसे कम बोली लगाने वाली निकली। मूल प्रस्ताव में 18 विमान फ्रांस में बनाए जाने थे जबकि 108 हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड के साथ मिलकर तैयार किये जाने थे। यूपीए सरकार और दसॉ के बीच कीमतों और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर लंबी बातचीत हुई थी। 
 
अंतिम वार्ता 2014 की शुरुआत तक जारी रही लेकिन सौदा नहीं हो सका। प्रति राफेल विमान की कीमत का विवरण आधिकारिक तौर पर कभी घोषित नहीं किया गया था, लेकिन तत्कालीन यूपीए सरकार ने संकेत दिया था कि सौदा 10.2 अरब अमेरिकी डॉलर का होगा। कांग्रेस ने प्रत्येक विमान की दर एवियोनिक्स और हथियारों को शामिल करते हुए 526 करोड़ रुपये (यूरो विनिमय दर के मुकाबले) बताई थी। 
 
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