नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा एवं यमुना नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण तथा उनके रखरखाव के मामले में केन्द्र सरकार समेत चार राज्यों को नोटिस जारी किया है। न्यायालय ने स्वच्छ गंगा मिशन एवं उत्तराखंड प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से भी जवाब मांगा है। न्यायालय ने सभी पक्षों से पूछा है कि उन्होंने गंगा एवं यमुना नदियों को प्रदूषणमुक्त करने एवं रखरखाव के लिये अभी तक क्या कदम उठाये हैं। इस पक्षों को 10 अक्टूबर तक जवाब पेश करने को कहा है।
उच्च न्यायालय की ओर से जिन राज्यों को नोटिस जारी किए गए हैं उनमें उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (दिल्ली) शामिल हैं। इनके अलावा केन्द्र सरकार, उत्तराखंड प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड एवं स्वच्छ गंगा मिशन से भी जवाब मांगा हैं। न्यायालय की ओर से उन राज्यों को पक्षकार बनाया गया है जहां से गंगा एवं यमुना नदियां बहती हैं।
अदालत की दो सदस्यीय खंडपीठ ने यह कदम दिल्ली निवासी अजय गौतम के एक पत्र का स्वत? संज्ञान लेते हुए उठाया है। याचिकाकर्ता की ओर से भेजे गये पत्र में कहा गया कि गंगा एवं यमुना नदियों में प्रदूषण की मात्रा बढ़ गयी है। दोनों नदियों का पानी भी प्रदूषित हो गया है। इन दोनों नदियों से हिन्दू धर्म के लोगों की गहरी आस्था है। मानसून सत्र को छोड़कर इन नदियों का प्रवाह घट गया है। इनका पानी हिन्दू धार्मिक अनुष्ठानों एवं रीति-रिवाजों के अनुकूल नहीं रह गया है।
याचिकाकर्ता ने अपने 19 पेज के इस पत्र में आगे कहा गया कि इन नदियों प्रदूषण की मात्रा इतनी बढ़ गई है कि इनका पानी नहाने एवं पीने लायक भी नहीं रह गया है। उन्होंने इस संबंध में कई अध्ययनों का हवाला दिया है। पत्र में विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों का हवाला देते हुए कहा गया है कि गंगा के पानी में 3000 गुना प्रदूषण है।
न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीके बिष्ट और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की युगलपीठ ने इस मामले में अधिवक्ता एन.एस. पुंडीर को न्यायमित्र अधिवक्ता नियुक्त किया है। कल उपलब्ध हुए इस आदेश में खंडपीठ ने केन्द्र सरकार के अलावा सभी पक्षों से 10 अक्टूबर तक जवाब पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 10 अक्टूबर को होगी।