नई दिल्ली। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश मामले में गुरुवार को संविधान पीठ में दिलचस्प बहस हुई। जजों ने कहा कि धार्मिक मान्यताओं से ज्यादा अहम लोगों के मौलिक अधिकार हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी के वकील ने जवाब दिया, कानून मंदिर के देवता को जीवित व्यक्ति का दर्जा देता है। उन्हें भी मौलिक अधिकार हासिल हैं। चीफ जस्टिस को ये कहना पड़ा कि उनकी दलीलें वाकई प्रभावशाली हैं।
सबरीमाला मंदिर में विराजमान भगवान अयप्पा को ब्रह्मचारी माना जाता है। साथ ही, सबरीमाला की यात्रा से पहले 41 दिन तक कठोर व्रत का नियम है। मासिक धर्म के चलते युवा महिलाएं लगातार 41 दिन का व्रत नहीं कर सकती हैं। इसलिए, 10 से 50 साल की महिलाओं को मंदिर में आने की इजाजत नहीं है।
कोर्ट इस बात की समीक्षा कर रहा है कि ये नियम संवैधानिक लिहाज से सही है या नहीं। मंदिर के तंत्री यानी मुख्य पुजारी की तरफ से वकील साईं दीपक ने दलीलें रखते हुए कहा कि ये मसला सामाजिक न्याय का नहीं है। मंदिर पर्यटन स्थल नहीं है। वहां आने की पहली शर्त है देवता में आस्था। जिन्हें देवता के सर्वमान्य स्वरूप में विश्वास नहीं, कोर्ट उनकी याचिका पर सुनवाई कर रहा है।
नागरिकों के मौलिक अधिकार अहम
5 जजों की बेंच के सदस्य जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, सबसे जरूरी ये है कि धार्मिक नियम संविधान के मुताबिक भी सही हो। कौन सी बात धर्म का अनिवार्य हिस्सा है, इस पर कोर्ट क्यों विचार करे हम जज हैं, धर्म के जानकार नहीं। जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, धार्मिक नियमों के पालन के अधिकार की सीमाएं हैं। ये दूसरों के मौलिक अधिकार को बाधित नहीं कर सकते।
देवता को भी हासिल हैं मौलिक अधिकार- मुख्य पुजारी के वकील ने कहा, इस बात को लेकर स्पष्टता होनी चाहिए कि एक विशेष आयु वर्ग की महिलाओं को आने से मना करने की वजह भेदभाव नहीं है। दूसरी बात ये है कि हिन्दू धर्म में मंदिर में स्थापित देवता का दर्जा अलग है, हर देवता की अपनी खासियत है। जब भारत का कानून उन्हें जीवित व्यक्ति का दर्जा देता है, तो उनके भी मौलिक अधिकार हैं। भगवान अयप्पा को ब्रह्मचारी रहने का अधिकार है। उन्हें निजता का मौलिक अधिकार हासिल है।
दलीलें असरदार हैं: चीफ जस्टिस-बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने पूछा, संविधान में मौलिक अधिकार नागरिकों के लिए रखा गया है या देवताओं के लिए वकील ने इसका जवाब दिया, हिंदू धर्म में देवताओं का दर्जा दूसरे धर्मों से अलग है।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देने वाले संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 धार्मिक आस्थाओं और सरकारी व्यवस्था के बीच एक किस्म का समझौता है। दोनों एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान करते हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने मुस्कुराते हुए कहा, मुझे स्वीकार करना पड़ेगा कि आपकी दलीलें प्रभावशाली हैं।
सामाजिक सौहार्द का ध्यान रखें- सबरीमाला सेवक संघ की तरफ से वकील कैलाशनाथ पिल्लई ने कोर्ट से आग्रह किया कि धार्मिक मसले को सिर्फ कानून की नजर से न देखें।