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समलैंगिकता पर बहस... जीवों के सेक्स, जज के बेटे का भी जिक्र

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jul 13 2018 10:26AM | Updated Date: Jul 13 2018 10:26AM
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नई दिल्ली। समलैंगिकता को अपराध से बाहर किया जाए या नहीं, इसे लेकर गुरुवार को भी सुप्रीम कोर्ट में जोरदार और रोचक बहस हुई। इसके पक्ष और विपक्ष में ढेरों तर्क आए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर दो बालिगों के बीच सहमति से संबंध के मामले को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया गया तो एलजीबीटी  समुदाय के लोगों से संबंधित कई मुद्दे, मसलन सामाजिक कलंक और भेदभाव खुद ही खत्म हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले पर अगली सुनवाई 17 जुलाई को करेगा।  
 
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने टिप्पणी की कि भारतीय समाज में सालों से एलजीबीटी कम्युनिटी के खिलाफ एक भेदभाव पैदा किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 377 के तहत दो सेम सेक्स बालिगों के बीच सहमति से संबंध बनाए जाने को अपराध के दायरे से बाहर किए जाने की अर्जी पर सुनवाई के दौरान उक्त टिप्पणी की।
 
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि इस भेदभाव के कारण इस समुदाय के लोगों के हेल्थ पर विपरीत असर हो रहा है सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील मेनका गुरुस्वामी से सवाल किया कि क्या कोई कानून या रेग्युलेशन होमोसेक्शुअल को किसी अधिकार को लेने में बाधक है। तब उन्होंने कहा कि ऐसा कोई नियम नहीं है। बेंच ने तब कहा कि एलजीबीटी कम्युनिटी के लिए कलंक सिर्फ इसलिए है क्योंकि सहमति से सेक्स संबंध को अपराध से जोड़ा गया है। एक बार अगर धारा-377 के दायरे से सहमति से संबंध के मामले को बाहर कर दिया जाता है तब सब कुछ खुद ही खत्म हो जाएगा। चाहे सामाजिक कलंक हो या फिर कोई और रोक-टोक, सब कुछ ठीक हो जाएगा। 
 
बहस के दौरान पूर्व जज के गे बेटे का जिक्र 
गुरुवार को बहस के दौरान जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने कहा कि प्रकृति और विकृति का सहअस्तित्व है। उन्होंने कहा कि कई प्रकार के जीवों में सेम सेक्स इंटरकोर्स देखने को मिलता है। वकील श्याम दीवान ने कहा, 'अब समय आ गया है कि कोर्ट अनुच्छेद 21 के तहत राइट टु इंटिमेसी को जीवन जीने का आधिकार घोषित कर दे।' सीनियर ऐडवोकेट अशोक देसाई ने समलैंगिकता को प्राचीन भारतीय संस्कृति का हिस्सा बताते हुए हाई कोर्ट के पूर्व जज के लिखे किताब का हवाला दिया, जिसमें जज ने कहा था उनका बेटा होमो है और मौजूदा कानून के तहत अपराधी है। 
 
सेक्शन 377 को अपराध नहीं माना तो राष्ट्रीय सुरक्षा पड़ेगी खतरे में
सुरेश कुमार कौशल ने संवैधानिक पीठ के समक्ष समलैंगिकता पर चल रही बहस में हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने कहा है कि अगर सेक्शन 377 को अपराध नहीं माना गया तो इससे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। सुरेश कौशल वही शख्स हैं जिनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में सेक्शन 377 की वैधता को बरकरार रखा था। कौशल के मुताबिक सेना के जवान अपने घर से दूर कठिन परिस्थिति में रहते हैं। ऐसे में वे होमोसेक्शुअल गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि गे सेक्स को लीगल बनाने से भारत में पुरुष यौनकर्मियों की दुकान खुल जाएगी।  
 
बुधवार को केंद्र सरकार ने धारा 377 पर कोई स्टैंड न लेकर फैसला पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दिया। अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार की ओर से कहा कि हम 377 के वैधता के मामले को सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ते हैं, लेकिन अगर सुनवाई का दायरा बढ़ता है, तो सरकार हलफनामा देगी। भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पांच जजों की बेंच सुनवाई कर रही है। 
 
परिवार के दबाव में गे को करनी पड़ती है शादी
गुरुवार को जब संविधान पीठ के सामने इसकी सुनवाई शुरू हुई तो जजों की टिप्पणी भी सामने आई। जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने कहा कि अपने सेक्शुअल ओरिएंटेशन की वजग से एलजीबीटी कम्युनिटी के लोगों को सेमी अबर्न और सेमी रूरल इलाकों में स्वास्थ्य सेवा हासिल करने में गैरबराबरी का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि परिवार के दबाव की वजह से गे शख्स को शादी करनी पड़ती है और यह उनके बाइ सेक्शुअल होने की वजह हो सकता है।  सेम सेक्स रिलेशनशिप के अपराध होने से इसके कई अन्य प्रभाव पड़ते हैं। 
 
दूसरे जीवों में भी सेम सेक्स इंटरकोर्स
जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने कहा कि नेचर में प्रकृति और विकृति का सहअस्तिव है। ऐसे हजारों जीव हैं जो सेम सेक्स इंटरकोर्ट करते हैं। इसपर अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हिंदू दार्शनिक ग्रंथों में प्रकृति और विकृति के सहअस्तित्व की बात दार्शनिक और आध्यात्मिक संदर्भ में की गई है। उन्होंने कहा कि इसे सेक्शुअलिटी और होमोसेक्शुअलिटी से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। 
 
समलैंगिकता भारत की प्राचीन संस्कृति का हिस्सा
पांच जजों की संविधान पीठ के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मेंटल हेल्थकेयर ऐक्ट के तहत संविधान ने किसी के सेक्शुअल ओरिएंटेशन की वजह से उसके साथ गैरबराबरी को निषेध करता है। सीनियर ऐडवोकेट आनंद ग्रोवर ने कहा कि गे कपल बच्चे तक अडॉप्ट नहीं कर सकते क्योंकि मौजूदा कानून के तहत यह अपराध के दायरे में आते हैं। तब अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यहां सुनवाई का दायरा धारा 377 है उसके आगे का नहीं। सीनियर ऐडवोकेट और पूर्व अटॉर्नी जनरल अशोक देसाई ने संवैधानिक बेंच से कहा कि होमोसेक्शुअलिटी भारतीय संस्कृति के लिए ऐलियन नहीं बल्कि प्राचीन भारतीय साहित्य और संस्कृति का हिस्सा है।
 
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