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बच्चे के पास नहीं था दायां फेफड़ा, डॉक्टरों ने ऐसे बचाई जान

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jul 8 2018 10:48AM | Updated Date: Jul 8 2018 10:49AM
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नई दिल्ली। अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों ने तंजानिया से आए एक साल के बच्चे फैव्रियनस की बेहद मुश्किल सर्जरी कर उसे नया जीवन दिया है। वह दिल की एक दुर्लभ बीमारी हेमीट्रंकस से पीड़ित था। उसका दायां फेफड़ा नहीं था। डॉक्टरों को इस मुश्किल सर्जरी में छह घंटे से अधिक समय लगा। 
 
सर्जरी में शामिल डॉ. मुथु जोथी ने बताया कि जब हमने पहली बार मरीज को देखा तो जानते थे कि सर्जरी में बहुत जोखिम है। हमने फिर भी सर्जरी का फैसला लिया। बिना सर्जरी के बच्चे का जिंदा रहना मुश्किल था। आमतौर पर दिल में चार चैम्बर और चार वॉल्व होते हैं। खून की एक वाहिका शरीर तक खून ले जाती है, जबकि दूसरी वाहिका फेफड़ों तक खून पहुंचाती है।
 
उन्होंने कहा कि इस मामले में बच्चे का दायां फेफड़ा नहीं था। कोई भी वाहिका दाएं फेफड़े तक नहीं जा रही थी। उसमें सिर्फ बायां फेफड़ा था और बाई पल्मोनरी आर्टरी आयोर्टा से निकल रही थी। चिकित्सा की भाषा में इसे हेमीट्रंकस कहा जाता है। मरीज के दिल में बड़ा छेद भी था। आमतौर पर आॅक्सीजन का सैचुरेशन 95-100 होता है। लेकिन बच्चे की छाती में संक्रमण के चलते सैचुरेशन सिर्फ 35 पर आ गया था।
 
दिल का छेद बंद करना चुनौती था
डॉ. जोथी ने कहा कि इस बीमारी के इलाज के लिए हमें सबसे पहले दिल का छेद बंद करना था। हमने आयोर्टा से आ रही बाएं फेफड़े की रक्त वाहिका को अलग किया और इस वाहिका एवं दिल के दाएं हिस्से के बीच एक ट्यूब क्राफ्ट की। ट्यूब को जानवर की वेन्स कॉन्टेग्रा से बनाया गया था। इस वेन में भी वॉल्व होते हैं, जिनका इस्तेमाल हमने दाएं दिल और फेफड़े के बीच में किया। अब कॉन्टेग्रा बाएं फेफड़े तक खून पहुंचा रही है। 
 
एक फेफड़े की वजह से अधिक समय लगा 
मरीज में एक ही फेफड़ा था, इसलिए उसे ठीक होने में ज्यादा समय लगा। पहले उसे वेंटीलेटर से हटा लिया गया था, लेकिन बाद में सांस की परेशानी को देखते हुए 10-12 दिन फिर से वेंटीलेटर पर रखना पड़ा। अब वह ठीक है और अपने देश लौट रहा है।
 
खूब खांसी आती थी
मरीज की मां दतिवा ने कहा कि मेरा बच्चा बहुत बीमार रहता था। जब वह सिर्फ दो सप्ताह का था तभी से उसे बहुत खांसी होती थी और खूब पसीना आता था। हमने पहले तंजानिया में डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन उसे आराम नहीं मिला। समय बीतने के साथ उसके नाखून और जीभ नीली पड़ने लगी। हम समझ गए कि उसे कुछ गंभीर बीमारी है और हमने इलाज के लिए भारत आने का फैसला लिया।
 
ये थे शामिल
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों की टीम में सीनियर कंसलटेन्ट-पीडिएट्रिक कार्डियोथोरेसिक सर्जन डॉ। मुथु जोथी, सीनियर कंसलटेन्ट, कार्डियोलोजी डॉ। ए।के। गंजू, कंसलटेन्ट, पीडिएट्रिक कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ. दीपा सरकार शामिल थे।
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