नई दिल्ली। भारत में शिक्षा के अधिकार के तहत 2010 से अब तक 40 हजार केस से ज्यादा केस दर्ज हो चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा मामले निजी स्कूलों में गरीबों को 25 फीसदी आरक्षण को लेकर हैं। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे केस हैं, जिनमें न्याय मिलना बाकी है। वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, 8 साल में अब तक 41,343 केस दर्ज किए गए हैं। इनमें से 2,477 केसों में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी चल रही है।
सामाजिक न्याय के लिए लड़ने वाले कार्यकतार्ओं ने अब तक 500 से ज्यादा केस गरीब बच्चों को आरटीई के तहत अधिकार दिलाने के लिए दर्ज किए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, अन्य केस निजी स्कूलों में शिक्षक की पात्रता, मानदंड और मान्यताओं के नियमों के खिलाफ दर्ज किए गए हैं। शिक्षा का अधिकार शिकायतों के निपटारे के लिए बच्चों के अधिकार के लिए बने नेशनल और स्टेट कमीशन पर निर्भर करता है, लेकिन इनमें सदस्यों की कमी है। रिपोर्ट के मुताबिक, इस अधिकार के तहत कोर्ट तक मामलों के पहुंचने के लिए नियमों में छूट की वजह से दर्ज केसों की संख्या में इजाफा हुआ है।
आरटीई अधिनियम 1 अप्रैल, 2010 को लागू हुआ था। आरटीई अधिनियम का उद्देश्य सभी को ''नि:शुल्?क और अनिवार्य'' शिक्षा मिलना है। हर बच्चे को अपनी शिक्षा जारी रखने और उसे पूरा करने का अधिकार है। इस अधिनियम में निजी स्कूलों में 25 फीसदी गरीब बच्चों को कोटा के तहत प्रवेश देने का भी प्रावधान है।