नई दिल्ली। अनुसूचित जाति, जनजाति कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण के मामले पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह मामला संवैधानिक बेंच के पास है और जब तक इस पर अंतिम फैसला नहीं आ जाता तब तक केंद्र सरकार कानून के मुताबिक प्रमोशन में आरक्षण लागू कर सकती है।
सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एसएसजी) मनिंदर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कर्मचारियों को प्रमोशन देना सरकार की जिम्मेदारी है। सिंह ने कहा कि अलग-अलग हाई कोर्ट के फैसलों के चलते यह प्रमोशन रुक गया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि सरकार आखिरी फैसला आने से पहले तक कानून के मुताबिक एससी/एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दे सकती है।
यूपी का कानून रद्द कर दिया था
तीन साल पहले उत्तरप्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण देने का प्रावधान रद्द कर दिया था। यह प्रावधान तत्कालीन बसपा सरकार ने किया था। इस फैसले के बाद राज्य में सभी प्रोन्नत लोगों को पदावनत कर दिया गया था।
यह है नगराज फैसला
साल 2006 में नगराज फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य एससी और एसटी को पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है। यदि वह आरक्षण के प्रावधान बनाना चाहते हैं, तो राज्य को गणनात्मक आंकड़े जुटाने होंगे, जिसमें यह बताया जा सके कि एससी-एसटी वर्ग पिछड़ा हुआ है। उसका सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। फैसले में साथ ही यह भी कहा गया था कि अगर आरक्षण देना बेहद जरूरी है, तो उसे ध्यान रखना होगा कि यह 50 फीसदी की सीमा से ज्यादा न हो, क्रीमीलेयर को समाप्त न करे तथा अनिश्चितकाल के लिए न हो। इससे कुल मिलाकर प्रशासनिक कार्यकुशलता भी प्रभावित न हो।
क्या है मामला
यह मामला त्रिपुरा हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील से सामने आया है। इसमें त्रिपुरा एससी-एसटी (सेवा पोस्ट में आरक्षण) कानून, 1991 की धारा 4 (2) को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस प्रावधान के कारण सामान्य श्रेणी के लोगों को बराबरी के अधिकार से वंचित कर दिया है क्योंकि सरकार ने आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को प्रमोशन दे दिया है। यह नगराज मामले का सरासर उल्लंघन है। लेकिन राज्य सरकार ने दलील दी कि त्रिपुरा जैसे राज्य में जहां एससी, एसटी की आबादी 48 फीसदी है वहां आरक्षण में 50 फीसदी की सीमा (इंदिरा साहनी फैसला 1992) नहीं मानी जा सकती। त्रिपुरा हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ राज्य ने अपील 2015 में दायर की थी, जो अब सुनवाई पर आई है।