बेंगलुरु। कर्नाटक में चुनावी परिणाम आने के साथ ही हर पल राजनीतिक समीकरणों की नई-नई परिभाषा लिखी जा रही है। सुबह वोटिंग शुरू होते ही बढ़त के साथ शुरू हुआ भाजपा के जश्न का दौर दोपहर आते-आते ठंडा पड़ गया। भाजपा सबसे बड़ा दल तो बनी, लेकिन बहुमत से कुछ कदम दूर आकर ठिठक गई।
दूसरी ओर सुबह तक कांग्रेस और जेडीएस जैसे दल जहां अपनी हार निश्चित मानकर खामोशी की चादर ओढ़ चुके थे, शाम होते-होते उनकी गलियां फिर गुलजार हो गईं। कर्नाटक में चुनाव परिणाम आने के साथ ही सत्ता की गाड़ी रिवर्स गियर में आ गई। जहां सबसे ज्यादा सीट जीतने वाली भाजपा सत्ता से दूर रह गई, वहीं सबसे कम सीट पाने वाली जेडीएस अपना मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी में है।
किस्मत का आलम
कर्नाटक में कांग्रेस ने जेडीएस के अध्यक्ष जिन एचडी कुमारस्वामी को मात्र 37 सीटों के बाद भी अपने 78 विधायकों का समर्थन कर मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान किया है, कभी उनके पिता भी मात्र 46 सांसदों के बूते देश के प्रधानमंत्री बन बैठे थे। किस्मत का आलम कुछ ऐसा है कि सत्ता की कुर्सी घर बैठे इन बाप-बेटे की चौखट चूमती रही है। बता दें कि कर्नाटक चुनावों का परिणाम आने से पूर्व जेडीएस पार्टी के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमार स्वामी ने दावा किया था कि वे किंगमेकर नहीं, किंग बनेंगे।
परिणाम सामने आए तो उनकी बात जैसे सच होती भी दिख रही है। विधानसभा चुनाव में जेडीएस को मात्र 37 सीटें, जबकि एक सीट उनकी गठबंधन पार्टी बसपा को मिली है। वहीं कांग्रेस को 78 और भाजपा को 105 सीटें मिलीं। हालांकि भाजपा को सत्ता से रोकने के लिए कांग्रेस जेडीएस का सीएम बनाने को तैयार है।
अब बस इंतजार है तो राज्यपाल के बुलावे का, जिनसे कुमारस्वामी मिलने का वक्त मांग चुके हैं। कुमारस्वामी अगर मुख्यमंत्री बनते हैं तो राजनीति का एक ऐसा संयोग भी सामने आएगा, जो आज से पहले शायद ही देखा गया हो। कुमारस्वामी से पहले उनके पिता एचडी देवगौड़ा की किस्मत भी कभी अचानक ऐसे ही चमक उठी थी, जब घर बैठे-बैठे ही देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी उनकी चौखट तक पहुंची। तब भी सामने भाजपा ही थी और आज भी भाजपा ही है, तब भी समर्थन में कांग्रेस थी और आज भी वही है।
साल 1996 के आम चुनावों के बाद भाजपा 161 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई। राष्ट्रपति के नियंत्रण के बाद अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री चुने गए। राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा ने उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 14 दिन का समय दिया, लेकिन तमाम हाथ-पैर मारने के बाद भी वाजपेयी बहुमत नहीं जुगाड़ पाए, नतीजतन 13 दिन सरकार चलाने के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद देश में नई सरकार के गठन की कवायद शुरू हुई।
22 साल बाद इतिहास फिर खुद को दोहरा रहा
इस तरह संयुक्त मोर्चा के कुल सांसदों की संख्या पहुंच गई 192 और कांग्रेस के 140 विधायकों का समर्थन उनके पास पहले से ही था। कुल 332 सांसदों के साथ देवगौड़ा ने देश के प्रधानमंत्री की कमान संभाल ली। हालांकि उनका यह सफर ज्यादा लंबा नहीं चला और सत्ता संघर्ष के बीच कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने देवगौड़ा से समर्थन वापिस ले लिया। नतीजतन 332 दिन के बाद ही उनकी प्रधानमंत्री के पद वाली पारी का अंत हो गया। 22 साल बाद इतिहास एक बार फिर खुद को दोहरा रहा है, सारे किरदार भी वैसे ही हैं और परिस्थितियां भी वही, बस देवगौड़ा की जगह उनके बेटे कुमारस्वामी सामने हैं।
ऐसे पीएम बन गए थे देवगौड़ा
कांग्रेस 140 सीटों के साथ दूसरे नंबर की पार्टी थी, लेकिन बहुमत की जुगाड़ उसके पास भी दूर-दूर तक नहीं थी। उसके बाद नंबर था राष्ट्रीय मोर्चे का, जिसके पास कुल 79 सीटें थीं। इस मोर्चे के मुखिया यानी जनता दल के एचडी देवगौड़ा कुछ दिन पहले ही विधानसभा चुनाव जीतकर कर्नाटक में मजे से अपनी सरकार चला रहे थे।
पार्टी के पास लोकसभा के कुल 46 सांसद थे। भाजपा को दोबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस ने बड़ा दांव चला और राष्ट्रीय मोर्चा को बाहर से समर्थन देते हुए सरकार बनाने का आॅफर दिया। प्रस्ताव बड़ा था, ऐसे में देवगौड़ा तुरंत तैयार हो गए और अपने 46, समाजवादी पार्टी के 17, तेलुगूदेशम पार्टी के 16 विधायकों के साथ सरकार बनाने का दावा कर दिया। इसके बाद तो कुछ और अन्य पार्टियां भी उनके साथ आ गर्इं, जिसके चलते बना 'संयुक्त मोर्चा', जिसमें लेफ्ट के 52, तमिल मनिला कांग्रेस के 20, द्रमुक के 17 और असम गण परिषद के साथ ही कई अन्य छोटी पार्टियों के 19 सांसदों का साथ भी मिल गया।
कभी भाजपा के समर्थन से बनाई थी सरकार
पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी ने कर्नाटक की दोनों सीटें रामानगरम और चन्नापाटन से जोरदार जीत दर्ज की है। कुमारस्वामी साल 2006 से 2007 तक कर्नाटक के सीएम रह चुके हैं। वे जेडीएस का गढ़ मानी जाने वाली रामानगरम से तीन बार विधायक रह चुके हैं। साल 2013 में रामानगरम से 40 हजार वोटों से जीते थे। दो बार लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं।
कुमारस्वामी ने असल राजनीति मे खुद को किंग साबित किया है, लेकिन राजनेता होने के अलावा कुमारस्वामी कन्नड़ फिल्मों में बतौर निर्माता और वितरक भी काम करते हैं। इसके साथ ही कुमारस्वामी को चाहने वाले उन्हें कुमारान्ना के नाम से भी पुकारते हैं। इस बार जेडीएस ने भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस से हाथ मिला लिया है। इसी भाजपा के साथ साल 2006 में जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई थी और खुद कुमारस्वामी सीएम बने थे। गठबंधन की उस सरकार में जब येदियुरप्पा का सीएम बनने का नंबर आया तो कुमारस्वामी ने समर्थन वापस ले लिया था।