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26/11: तुकाराम ने अपनी जान गंवाकर भी जिंदा पकड़ा था कसाब

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Nov 26 2017 11:47AM | Updated Date: Nov 26 2017 11:47AM
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मुंबई। 26 नवंबर 2008 की भयावह रात मुंबई में और देश में रहने वाला कोई भी व्यक्ति नहीं भूल सकता। रविवार को 26/11 आतंकी हमले की 9वीं बरसी पर फिर लोगों को वे खतरनाक जख्म याद आ गए। उस आतंकी हमले में न केवल 166 लोगों की मौत हुई थी, बल्कि सैकड़ों लोग उस जख्म को लेकर आज भी सिहर जाते हैं। मुंबईकरों के जख्म तो भरे हैं, लेकिन दिलों में टीस शेष है। 

खौफ के वे 60 घंटे: 
सीमा पार से आए आतंकवादियों ने मुंबई पर लगभग 60 घंटे तक कहर बरपाया। खौफ के 60 घंटे तक मुंबईकर सांसे थामे सहमे रहे। आतंकियों की ओर से लगातार जारी फायरिंग से लोग यही सोच रहे थे कि न जाने अब क्या होगा।  हमलों की अगली सुबह 27 नवंबर को पता चला कि ताज से सभी बंधकों को छुड़ा लिया गया है, लेकिन फिर बाद में खबर आई कि हमलावरों ने कुछ और लोगों को अभी बंधक बना रखा है, जिनमें कई विदेशी भी हैं। हमलों के दौरान दोनों ही होटल रैपिड एक्शन फोर्ड (आरपीएफ), मैरीन कमांडो और नैशनल सिक्युरिटी गार्ड (एनएसजी) कमांडो से घिरे रहे। आतंक का ऐसा खूंखार रूप पहले किसी ने नहीं देखा था। तीन दिन तक सुरक्षा बल आतंकवादियों से जूझते रहे। इस दौरान मुंबई ही नहीं देश, दुनिया के नजरें ताज होटल, ओबेरॉय और नरीमन हाउस पर टिकी थी। 29 नवंबर की सुबह तक नौ हमलावरों का सफाया हो चुका था और लोगों के लिए राहत वाली खबर थी। खौफ के वे 60 घंटों से लोगों को मुक्ति तो मिली, लेकिन 170 लोगों की जान चली गई।

कितनी सतर्क हुई मुंबई
26/11 हमले के बाद यह एक जरूरी सवाल है कि कितनी सतर्क हुई मुंबई पुलिस। मुंबई पुलिस ने शहर के चप्पे-चप्पे पर उच्च तकनीक से लैस सीसीटीवी कैमरे लगा दिए, जिससे किसी भी आशंका को खत्म किया जा सके। इससे अपराध की रोकथाम में काफी मदद भी मिल रही है, लेकिन इसके बावजूद कई बार लापरवाही दिख ही जाती है। देर रात कई इलाकों में सुरक्षा की कमी महसूस होती है, जिसे अविलंब दूर करना चाहिए। इसके अलावा समुद्र तटों की निगरानी को और बेहतर बनाए जाने के प्रयास होने चाहिए, क्योंकि उस दौरान आतंकी समुद्री मार्ग से ही घुसे थे। 
 
गौरतलब है कि मुंबई को सुरक्षित बनाने का दावा करते हुए सरकार ने पिछले साल मुंबई की सड़कों से लेकर गलियों तक करीब 5200 उच्च तकनीक कैमरे लगा दिए। ये कैमरे इसलिए लगाए गए, ताकि एक कमरे में बैठकर पुलिस शहर में होने वाली दुर्घटनाओं पर नजर रखी जा सके। कसाब सहित अन्य आतंकी जिस समुद्री रास्ते से दक्षिण मुंबई के बुधवार पार्क के जरिए घुसे थे, वहां भी अब पुलिस का 24 घंटे पहरा रहता है। इससे भी बेहतर तरीके से सतर्कता बनाए रखने की जरूरत है।
 
यह हुआ था उस शाम?
मुंबई की वह शाम भी हर रोज की तरह शांत थी, लेकिन अचानक मौत सामने आकर खड़ी हो जाएगी, ऐसा किसी ने सोचा नहीं था। आज की शाम कोलाबा के समुद्री तट पर एक बोट से दस पाकिस्तानी आतंकी उतरे थे। लगभग दस आतंकी कोलाबा की मच्छीमार कॉलोनी से मुंबई में घुसे। मच्छीमार कॉलोनी से बाहर निकलते ही ये आतंकी दो-दो की टोलियों में बंट गए थे। दो आतंकी प्रसिद्ध यहूदी गेस्ट-हाउस नरीमन हाउस की तरफ, दो आतंकी सीएसटी की तरफ, दो-दो आतंकियों की टीम होटल ताजमहल की तरफ और बाकी बचे दो टीम होटल ट्राईडेंट ओबरॉय की तरफ बढ़ गए थे। इनके इरादे कितने खतरनाक थे कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।
 
आतंकी अपने षड्यंत्रों को अंजाम देने लगे
आतंकी अलग-अलग टीम में बंटकर खतरनाक षड्यंत्रों को अंजाम देने लगे। आतंकियों की पहली टीम में इमरान बाबर और अबू उमर नामक आतंकवादी शामिल थे। ये दोनों लियोपोल्ड कैफे पहुंचे और रात करीब साढ़े नौ बजे जोरदार धमाका किया। आतंकियों की दूसरी टीम में अजमल आमिर कसाब और अबू इस्माइल खान शामिल थे। दोनों सीएसटी पहुंचे और अंधाधुंध गोलियों की बारिश करने लगे। इन दोनों आतंकियों ने यहां और आसपास के परिसर में 58 लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
 
गोलीबारी से थर्राया इलाका 
हर इलाका गोलीबारी की आवाज से थर्रा रहा था। आतंकियों की तीसरी टीम अब्दुल रहमान बड़ा और जावेद उर्फ अबू अली होटल ताजमहल की तरफ निकल गई थी। होटल के बहादुर कर्मचारियों की सूझबूझ से सभी मेहमानों को होटल से पिछले गेट से बाहर निकाल दिया गया। होटल ट्राईडेंट ओबरॉय में आतंकियों की एक टीम रिसेप्शन पर पहुंची और अचानक अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। इस गोलीबारी में होटल के 32 मेहमानों की जान चली गई। 
 
देश ने कई सपूत खोए
26/11 आतंकी हमले में देश ने अपने कई सपूत खो दिए। जांबाज एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे, मुंबई के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक कामटे, सेना के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन और वरिष्ठ पुलिस इंस्पेक्टर विजय सालस्कर सहित कई अन्य साहसी सपूतों ने आतंकवादियों से लोहा लेते हुए अपनी जान दे दी। इस हमले में अजमल कसाब एकमात्र आतंकवादी था, जिसे जिंदा पकड़ा गया था, जिसे चार साल के बाद 21 नवंबर, 2012 को फांसी दे दी गई थी।
 
साहसी तुकाराम ने अपनी जान गंवाकर भी जिंदा पकड़ा था आतंकी कसाब को
आतंकी हमले से कांप रही मुंबई में एक शख्स ऐसा भी था जिसने अपनी जान की परवाह किए बिना एक आतंकी को जिंदा पकड़ लिया। उस वीर जांबाज शख्स का नाम है तुकाराम ओंबले। मुंबई पुलिस में बतौर सहायक इंस्पेक्टर तैनात रहे आेंबले ने अपनी जान दे दी, लेकिन आतंकी अजमल कसाब को नहीं छोड़ा। मुंबई की डीबी मार्ग पुलिस को रात के 10 बजे सूचना मिली की दो आतंकी हथियारों के साथ हैं और सीएसटी में यात्रियों पर फायरिंग की है। इसके बाद 15 पुलिसवालों को डीबी मार्ग से चौपाटी की ओर मरीन ड्राइव पर बैरीकेडिंग करने के लिए भेजा गया। इसके बाद आतंकी भी सतर्क हो गए और बैरीकेडिंग से 40 से 50 फीट पहले ही वाहन रोक कर यू-टर्न ले लिया था। इसके बाद पुलिस की ओर से हुई फायरिंग में एक आतंकी मारा गया और दूसरा कसाब मरने का नाटक लगा। उस समय तुकाराम ओंबले के पास सिर्फ एक लाठी थी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। दूसरी तरफ कसाब के पास एक एके-47 थी। साहसी ओंबले ने कसाब की बंदूक की बैरल पकड़ ली और कसाब ने ट्रिगर दबा दिया। गोलियां ओंबले के पेट में लगी, लेकिन उन्होंने कसाब को नहीं छोड़ा। आखिरी सांस तक उन्होंने बैरल को थामे रखा था, ताकि कसाब और गोलियां न चला सके। कसाब ने उन पर पांच गोलियां दाग दी थी, जिससे उनकी मौत हो गई थी। उनकी वजह से ही खूंखार आतंकी कसाब को जिंदा पकड़ा जा सका। भारत सरकार की ओर से ओंबले को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। पूरा देश ओंबले की साहस को सलाम करता है।
 
तुकाराम की बेटी का छलका दर्द लगता है पापा अब घर वापस आएंगे
मुंबई हमले के समय आतंकवादी अजमल कसाब को जिंदा पकड़ने की कोशिश में शहीद हुए पुलिसकर्मी तुकाराम आोंबले की बेटी का कहना है कि इस आतंकी हमले को भले ही नौ वर्ष बीत गए हों, लेकिन अब भी परिवार को ऐसा लगता है कि वह घर लौटेंगे। हमले की बरसी से पहले वैशाली आोंबले नम आंखों से अपने पिता को याद करते हुए कहती हैं, हम महसूस करते हैं कि पापा किसी भी क्षण घर लौट जाएंगे, हालांकि हमें यह पता है कि वह अब कभी नहीं आएंगे। एम-एड की पढ़ाई कर चुकी वैशाली शिक्षिका बनना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि हम अक्सर यह सोचा करते हैं कि पापा ड्यूटी पर गए हैं और वह घर लौट आएंगे। हमने उनके सामान को घर में उन्हीं जगहों पर रखा है जहां वे पहले रहते थे। उनके सर्वाेच्च बलिदान पर हमारे परिवार को गर्व है। तुकाराम मुंबई पुलिस में सहायक उप निरीक्षक थे। 26 नवंबर, 2008 की देर रात कसाब को पकड़ने की कोशिश में उन्हें कई गोलियां लगीं और उनकी मौत हो गई। उनके साहसिक प्रयास का नतीजा था कि कसाब जिंदा पकड़ा गया था। बाद में कसाब को फांसी दी गई। वैशाली आोंबले ने कहा कि नौ साल बीत गए, लेकिन ऐसा एक दिन नहीं बीता, जब हमने उनको याद न किया हो। वह अपनी मां तारा और बहन भारती के साथ वर्ली पुलिस कैंप में रहती हैं। भारती राज्य सरकार के जीएसटी विभाग में अधिकारी हैं। 
 
कसाब के पकड़े जाने से हाफिज सईद का भंडाफोड़
आंतकी हमले में एक मात्र जिंदा पकड़े गए आतंकी अजमल कसाब के कारण ही हाफिज सईद की साजिश का भंडाफोड़ हो गया। ज्ञात हो कि पाकिस्तान में नजरबंदी से रिहा हुए 26/11 के मास्टरमाइंड हाफिज सईद ने मुंबई आतंकी हमले की पूरी जिम्मेदारी किसी अन्य संगठन पर मढ़ने की सोच रखी थी, ताकि उस हमले में पाकिस्तानी हाथ होने का सीधा सबूत नहीं मिल सके, लेकिन कसाब के जिंदा पकड़े जाने से उसके मंसूबे पर पानी फिर गया। हाफिज सईद का मकसद था कि इसमें स्थानीय किसी संगठन का ही नाम आ जाए, ताकि पाकिस्तान इससे अपना पल्ला झाड़ ले,  लेकिन कसाब के जिंदा पकड़े जाने से हमले में पाकिस्तानी संगठन लश्कर के नाम की पुष्टि हो गई और उसके मास्टरमाइंड होने का खुलासा हुआ।
 
पाकिस्तान की जमीन पर रचा गया आतंकी षड्यंत्र 
26/11  हमले की साजिश पाकिस्तान के आतंकी संगठन ने रचा। गौरतलब है कि 19वें एशियाई सुरक्षा सम्मेलन में भाग लेने आए दुरार्नी ने कहा, ‘मुंबई में हुए 26/11 आतंकवादी हमले को पाकिस्तान के एक आतंकवादी संगठन ने ही अंजाम दिया था। यह आतंकवादी हमला सीमा पार कर किया गया था।’ उन्होंने खास तौर पर कहा कि सीमा पार से किए जाने वाले हमलों का यह क्लासिक केस था। 
 
बता दें कि कि वर्ष 2008 आतंकवादी समुद्री रास्ते से आए थे और मुंबई पर हमला किया था। इस हमले में शामिल अजमल कसाब नाम के एक आतंकवादी के जिंदा पकड़े जाने के बाद यह बात साफ हो गई थी कि, इस हमले की साजिश पाकिस्तान में रचा गया। 

 

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