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चर्च से मिलें तलाक को कानूनी मान्यता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jan 19 2017 11:53PM | Updated Date: Jan 19 2017 11:53PM
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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को कहा कि क्रिश्चन पर्सनल लॉ के जरिए मिला तलाक वैध नहीं है क्योंकि यह कानूनी प्रावधान का स्थान नहीं ले सकता।   

दरअसल, कोर्ट ने इस संबंध में एक जनहित याचिका खारिज कर दी है जिसके जरिए चर्च कोर्ट से मंजूर ऐसे तलाक को समान कानूनी मान्यता देने की मांग की गई थी।
    
चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की सदस्यता वाली एक पीठ ने कर्नाटक कैथोलिक एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष क्लारेंस पेस की याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस मुद्दे का अपने 1996 के फैसले में निपटारा किया था जो मोली जोसेफ बनाम जार्ज सेबस्टियन के मामले में दिया गया था। 
    
उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ईसाइयों का पसर्नल लॉ का पक्षों पर धर्म संबंधी या चर्च संबंधी प्रभाव हो सकता है। लेकिन तलाक अधिनियम के लागू होने के बाद ऐसे पर्सनल कानून के तहत विवाह विच्छेद या समाप्ति का कोई कानूनी प्रभाव नहीं हो सकता क्योंकि कानून ने एक अलग प्रक्रिया और तलाक या विवाह विच्छेद के लिए एक अलग संहिता मुहैया की है। 
    
पेस ने 2013 में दायर याचिका में कहा था कि किसी चर्च द्वारा मंजूर किए गए तलाक को भारतीय कॉमन लॉ के तहत वैध माना जाना चाहिए जैसा कि ‘तीन तलाक’ के सिलसिले में मुसलमानों के मामले में किया गया। 
    
पेस के लिए पेश हुए पूर्व अटार्नी जनरल सोली सोराबजी ने दलील दी कि जब मुस्लिम दंपती के लिए मौखिक रूप से तलाक कहना कानूनी मान्यता पा सकता है, फिर क्रिश्चन पसर्नल लॉ के आदेश क्यों नहीं अदालती कानून पर बाध्यकारी हो सकते हैं। 
    
उन्होंने आरोप लगाया कि क्रिश्चन कोर्ट से तलाक मंजूर कराने के बाद शादी करने वाले कई कैथोलिक क्रिश्चनों ने बहुविवाह के आरोप का सामना किया है क्योंकि इस तरह के तलाक को फौजदारी एवं दीवानी कोर्ट से मान्यता प्राप्त नहीं है।  
    
वहीं, केंद्र ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि क्रिश्चन पर्सनल लॉ को भारतीय क्रिश्चन मैरिज एक्ट 1972 और तलाक अधिनियम 1869 की जगह लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती। 

 

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