नई दिल्ली। अयोध्या विवाद में उच्चतम न्यायालय के गत नौ नवंबर के फैसले के खिलाफ शुक्रवार को कुल छह पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गयीं, जिनमें पांच याचिकाएं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के समर्थन से दायर की गयी हैं। एआईएमपीएलबी के समर्थन से मौलाना महफूजुर रहमान, मोहम्मद मिसबाहुद्दीन, मौलाना मुफ्ती हसबुल्ला, मोहम्मद उमर और हाजी महबूब ने पुनर्विचार याचिकाएं दायर कीं, जबकि छठी याचिका पीस पार्टी के मोहम्मद अयूब ने दाखिल की। एआईएमपीएलबी के समर्थन से दायर याचिकाओं पर वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन के भी हस्ताक्षर हैं, इससे स्पष्ट है कि यदि इन याचिकाओं को ओपन कोर्ट में सुनवाई के लिए मंजूर किया जाता है तो मुस्लिम पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता धवन ही जिरह करेंगे।
आज दायर छह याचिकाओं के साथ ही अयोध्या के राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद जमीन विवाद में शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ अब तक कुल सात समीक्षा याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। सबसे पहले जमीयत-उलेमा-ए-हिन्द ने पिछले दिनों याचिका दायर की थी। याचिकाओं में कहा गया है कि हिन्दुओं को विवादित जमीन का मालिकाना हक दिया गया जबकि फैसले में कहा गया है कि मस्जिद को अवैध तरीके से तोड़ा गया और उसका लाभ हिन्दुओं को दे दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि फैसले के अनुसार हिन्दुओं का कभी भी पूरे विवादित इलाके पर कब्जा नहीं था। 16 दिसंबर 1949 तक मुस्लिम वहां नमाज पढने जाते थे। बाद में हिन्दुओं ने उन्हें रोक दिया और जबरन घुस गए थे।
साथ ही इन याचिकाओं में कहा गया है कि फैसले में यह स्वीकार किया जाना गलत है कि मूर्ति न्यायिक व्यक्ति हैं और बीच वाले गुंबद पर उनका अधिकार था जबकि यह भी माना गया है कि मूर्ति को जबरन बीच वाले गुंबद के नीचे रखा गया था। ऐसे में अवैध रूप से रखी गयी मूर्ति का कानूनी दावा नहीं किया जा सकता। यहां मामला यह है कि अवैध तरीके से मस्जिद ढहाया गया और जबरन कब्जा लिया गया तथा कानून का उल्लंघन किया गया। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि हिन्दू बाहरी अहाते में पूजा का अधिकार रखते थे और मुस्लिम 16 दिसंबर 1949 तक नमाज के लिए वहां जाते थे। उनका कहना है कि मस्जिद को अवैध तरीके से तोड़ा गया और ऐसे में पूर्ण न्याय नहीं हुआ। इसलिए फैसले पर फिर से विचार किया जाना चाहिए।