नई दिल्ली। सरकार ने दुर्गम तथा सुदूर इलाकों में हवाई सेवा शुरू करने पर फोकस करते हुये अगले पाँच साल में एक हजार नये मार्गों पर तथा 100 से ज्यादा नये हवाई अड्डों से विमान सेवा शुरू करने का लक्ष्य तय किया है। इसी क्रम में छोटे तथा मझौले शहरों को हवाई नेटवर्क से जोड़ने की केंद्र सरकार की क्षेत्रीय संपर्क योजना यानी ‘उड़ान’ के चौथे चरण की बोली प्रक्रिया मंगलवार को शुरू की गयी। संभावित बोली प्रदाताओं को उनके संशय तथा स्पष्टीकरण पूछने के लिए 11 दिसंबर तक का समय दिया गया है। इस बार विमान सेवा कंपनियों को मिलने वाले वीजीएफ में वृद्धि की गयी है।
‘उड़ान’ योजना के तहत दूरी के हिसाब से विमानों तथा हेलीकॉप्टरों के किराये तय कर दिये गये हैं। योजना के तहत शुरू की गयी उड़ानों में आधे टिकट सरकार द्वारा तय दर पर उपलब्ध करानी होती है जबकि बाद के आधे टिकटें विमान सेवा कंपनी किसी भी कीमत पर बेच सकती है। ‘उड़ान’ योजना के तहत आने वाली आधी सीटों से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए एक विशेष कोष (वीजीएफ) बनाया गया है। ‘उड़ान-4’ की बोली प्रक्रिया शुरू होने के मौके पर नागर विमानन मंत्रालय ने बताया कि उसने अगले पाँच साल में एक हजार नये मार्गों पर सेवा शुरू करने और 100 से ज्यादा नये हवाई अड्डों को विमानन नेटवर्क से जोड़ने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के रोडमैप के बारे में बताते हुये मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि मुख्य फोकस दुर्गम तथा सुदूर इलाकों के शहरों पर होगा। इनमें पूर्वोत्तर के शहर, पर्वतीय राज्य, जम्मू-कश्मीर और द्वीप शामिल हैं।
भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण भविष्य में कम लागत वाले हवाई अड्डे बनाने पर जोर देगा तथा इन हवाई अड्डों को जोड़ने वाले मार्गों को वीजीएफ प्राथमिकता के आधार पर दिया जायेगा। ‘उड़ान-4’ में 20 से ज्यादा सीटों वाले विमानों को दुर्गम तथा सुदूर इलाकों में चलाने पर ज्यादा वीजीएफ का प्रावधान किया गया है। बीस से कम सीटों वाले विमानों के लिए वीजीएफ बढ़ाया गया है। इस बार एक बड़ा बदलाव यह किया गया है कि वीजीएफ सिर्फ 600 किलोमीटर की उड़ान के लिए दिया जायेगा। इससे ज्यादा की दूरी के लिए कोई क्षतिपूर्ति सरकार द्वारा नहीं दी जायेगी, भले ही उड़ान की कुल दूरी ज्यादा ही क्यों न हो। इस बार मार्गों के आवंटन में उन हवाई अड्डों को प्राथमिकता दी जायेगी जिनके विकास का काम भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण पूरा कर चुका है। यदि किसी हवाई अड्डे का विकास पूरा नहीं हुआ है।