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भारतीय पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ‘वीजा ऑन अराइवल’ पर विचार : ताजिकिस्तान

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Dec 3 2019 4:17PM | Updated Date: Dec 3 2019 4:17PM
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नई दिल्ली। ताजिकिस्तान भारतीय पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ‘वीजा ऑन अराइवल’ और ‘ट्रांजिट वीजा’ की सुविधा देने के विकल्पों पर विचार कर रहा है। भारत में ताजिकिस्तान के राजदूत सुल्तान रहीमजादा ने यहाँ एक कार्यक्रम से इतर को बताया कि ताजिकिस्तान के पास भरपूर प्राकृतिक सौंदर्य है। दोनों देशों की सांस्कृतिक विरासत में भी काफी समानता है। इसके बावजूद वहाँ जाने वाले पर्यटकों में भारतीयों की संख्या बेहद कम है।
 
उन्होंने बताया कि अन्य देशों की तुलना में भारत से ताजिकिस्तान आने वाले पर्यटकों पिछले साल एक करोड़ से ज्यादा पर्यटक ताजिकिस्तान आये थे जिनमें करीब एक हजार ही भारतीय थे। इसका एक प्रमुख कारण दोनों देशों के बीच संपर्क साधनों की कमी है। उन्होंने बताया कि 01 दिसंबर से ताजिकिस्तान की निजी विमान सेवा कंपनी सोमोन एयर ने दिल्ली और मध्य एशियाई देश की राजधानी दुशाम्बे के बीच एक साप्ताहिक उड़ान शुरू की है।
 
इससे पर्यटकों को ज्यादा विकल्प मिलेगा। भारतीय पर्यटकों को आकर्षित करने के उपायों के बारे में रहीमजदा ने कहा ‘‘हम वीजा प्रक्रिया को सरल बनाने पर विचार कर रहे हैं। इसमें एक विकल्प वीजा ऑन अराइवल (देश में पहुँचने पर वीजा) का है। ट्रांजिट वीजा देने के विकल्प पर भी विचार किया जा रहा है ताकि किसी दूसरे देश को जाने वाले पर्यटक भी कुछ समय के लिए ताजिकिस्तान में रुककर वहाँ घूम सकें।’’ उन्होंने कहा कि ताजिकिस्तान काफी सुंदर देश है।
 
यह धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर की तरह ही पर्वतीय क्षेत्र है। ताजिकिस्तान के राजदूत ने कहा कि दोनों देशों के बीच निवेश की काफी संभावनाएँ हैं। अभी ज्यादा भारतीय कंपनियाँ वहाँ नहीं हैं, लेकिन निश्चित रूप से पर्यटन तथा अन्य क्षेत्रों में वे निवेश कर सकती हैं। दुशाम्बे के तीन पाँच सितारा होटलों में से एक हिल्टन होटल भारतीय कंपनी के निवेश से बना है।
 
उन्होंने बताया ‘‘ताजिकिस्तान में भारतीय कंपनियों का निवेश मात्र 10 करोड़ डॉलर से भी कम है। इसलिए हम निरंतर भारत से निवेश तथा पर्यटन को बढ़ाने के प्रयास कर रहे हैं। ...ताजिकिस्तान के पास ऊर्जा, कपड़ा, उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, पर्यटन, कीमती पत्थरों की क्रंिशग और खनन क्षेत्र में काफी संसाधन हैं और भारतीय कंपनियाँ इनमें निवेश कर सकती हैं।  
 
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