श्रीगंगानगर। पूरी दुनिया में बारूदी सुरंगों के इस्तेमाल में लगातार कमी आ रही है, दुनिया में बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल न करने को लेकर जागरूकता बढ़ी है, जिससे मृतकों की संख्या में काफी कमी आई है। दुनिया में 160 से अधिक देश अब बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल नहीं करते। बावजूद इसके अब भी भारत सहित पांच देशों ने बारूदी सुरंगों के इस्तेमाल न किए जाने संबंधी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। यह जानकारी आज श्रीगंगानगर में इंडियन इंस्टिट्यूट फॉर पीस डिजास्टरमेंट एंड एनवायरमेंटल प्रोटक्शन के अध्यक्ष डॉ बालाकृष्ण कुर्वे ने बारूदी सुरंगों के इस्तेमाल में आई कमी के दृष्टिगत आयोजित एक कार्यशाला में दी।
इंटरनेशनल कंप्लेन टू बैन लैंडमाइंस में भारत का बतौर समन्वयक प्रतिनिधित्व कर रहे डॉ. कुर्वे ने बताया कि अब तक दुनिया के 164 देशों ने ओटाया संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। इन देशों में अब न तो बारूदी सुरंगों का उत्पादन होता है और न ही इसका इस्तेमाल किया जाता है। डॉ. कुर्वे ने बताया कि भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ संबंध अच्छे नहीं होने के कारण अब तक भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, लेकिन देश के कुछ हिस्सों में बारूदी सुरंगों का उपयोग करना बंद कर दिया है। उन्होंने बताया कि उत्तर-पूर्व के राज्यों में अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर अब बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल नहीं होता। यहां तक की उत्तर-पूर्व राज्यों में सक्रिय उग्रवादी संगठनों ने भी बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल करना रोक दिया है। करीब चार वर्ष के प्रयास के बाद उग्रवादी संगठनों ने संधि पर हस्ताक्षर किए हैं।
उन्होंने बताया कि जम्मू कश्मीर, पंजाब और राजस्थान के साथ लगती अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर मजबूरीवश बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल अभी रुका नहीं है, लेकिन राहत की बात यह है कि अब परंपरागत बारूदी सुरंगों के स्थान पर अब स्मार्ट बारूदी सुरंगे जरूरत पड़ने पर लगाई जाती हैं। स्मार्ट बारूदी सुरंगों की विशेषता यह है कि एक तय अवधि के बाद यह अपने आप निष्क्रिय हो जाती हैं। इससे कोई नुकसान नहीं होता। उन्होंने बताया कि भारत के अलावा पाकिस्तान, अमरीका रूस और चीन ने संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। डा कुर्वे ने बताया कि पिछले करीब ढाई दशक से दुनिया भर में बारूदी सुरंगों के कहर के खिलाफ चल रहे अभियान का सार्थक परिणाम यह सामने आया है कि जहां पहले वर्ष में औसतन तीस हजार व्यक्ति बारूदी सुरंगों की वजह से जाने गंवाते थे या प्रभावित होते थे, अब यह आंकड़ा घटकर औसतन पांच हजार वार्षिक रह गया है।
यह अभियान अब भी जारी है और वह दिन जल्दी ही आएगा जब पूरी दुनिया में बारूदी सुरंगों का उत्पादन बंद हो जाएगा, फिर इसका इस्तेमाल भी नहीं होगा। आईसीबीएल को इसी के लिए वर्ष 1997 में नोबेल का विश्व शांति पुरस्कार मिला। उन्होंने बताया कि बारूदी सुरंगों से प्रभावितों की संख्या में काफी कमी के चलते संयुक्त राष्ट्र संघ ने सिविल सोसाइटी के तौर पर सदस्यता दी है। सिविल सोसाइटी को यूएनओ में स्थान मिलने से दुनिया भर में बारूदी सुरंगों को लेकर हो रही गतिविधियों और इसके प्रभावों को तथ्यों के साथ रखने का एक महत्वपूर्ण मौका मिला है। यू एनओ के तत्वावधान में ही अब दुनिया भर में उन क्षेत्रों में जाकर लोगों का आभार व्यक्त किया जा रहा है, जिन्होंने बारूदी सुरंगों के विरुद्ध अभियान में अहम योगदान प्रदान किया। डा सुर्वे ने बताया कि श्रीगंगानगर जिला पाकिस्तान सीमा पर स्थित होने के कारण यहां के सीमा क्षेत्र में भी वर्ष 2002 में संसद पर आतंकी हमले के पश्चात पड़ोसी देश के साथ संबंध तनावपूर्ण हो जाने पर ऑपरेशन पराक्रम के तहत बारूदी सुरंगे बिछाई गई थीं।