नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय के कर्मचारी पेंशन योजना से संबंधित गत सोमवार के फैसले से निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की पेंशन में भारी बढ़ोतरी का रास्ता साफ तो हो गया है, बशर्ते कुछ व्यावहारिक अड़चनें दूर हो जाएं। अभी सरकारी और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की पेंशन के बीच कोई तुलना नहीं है। अच्छी-खासी तनख्वाह पाने वाले निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को भी पेंशन नाममात्र ही मिलती है। न्यायालय ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन की वह याचिका खारिज कर दी, जो उसने केरल उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दी थी। उच्च न्यायालय ने सेवानिवृत्त हुए सभी कर्मचारियों को उनके वेतन के हिसाब से पेंशन देने का आदेश दिया था।
इस आदेश के बाद निजी कर्मचारियों के पेंशन की गणना पूरे वेतन के आधार पर होगी। इस बाबत न्यायालय के फैसले का यह मतलब नहीं है कि कर्मचारी भविष्य निधि में योगदान करने वालों को अचानक बहुत बड़ा फायदा होगा। अगर वे ज्यादा पेंशन के विकल्प को चुनते हैं तो उन्हें अपने भविष्य निधि की राशि के बड़े हिस्से से हाथ धोना भी पड़ेगा। सरकार ने 1995 में संगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए ईपीएस शुरू की थी जिसमें कंपनी को कर्मचारी के मूल वेतन का 8.33 प्रतिशत हिस्सा जमा करना होता था, फिर इसे 6,500 रुपये का 8.33 प्रतिशत कर दिया गया। इसके बाद नियमों में बदलाव करते हुए कहा गया कि कंपनी और कर्मचारी आपसी सहमति से अपने वेतन का जितना भी हिस्सा चाहें, पेंशन फंड में जमा कर सकते हैं।
वर्ष 2014 में ईपीएस कानून में हुए संशोधन के मुताबिक योजना में अधिकतम 15,000 रुपये का 8.33 प्रतिशत डालने का नियम बनाया गया। यह भी तय किया गया कि जो लोग पूरे वेतन पर पेंशन चाहते हैं, उनका पेंशन योग्य वेतन पांच साल का औसत मासिक वेतन माना जाएगा। इससे पहले नियम था कि एक साल के औसत मासिक वेतन के आधार पर पेंशन तय की जाएगी। केरल उच्च न्यायालय ने एक सितंबर 2014 को इस संशोधन पर रोक लगा दी थी। उसने एक साल के औसत मासिक वेतन को फिर से पेंशन की रकम तय करने का आधार बनाया।