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राहुल के वादे पर जेटली का वार, कहा- छल-कपट का रहा है कांग्रेस का इतिहास

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Mar 26 2019 9:44AM | Updated Date: Mar 26 2019 9:44AM
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नई दिल्ली।  वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही देश की आबादी के पांच प्रतिशत परिवारों को वार्षिक 72 हजार रुपये देने के कांग्रेस के वायदे पर सोमवार को तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कि जिनता देने का वायदा किया गया है उससे अधिक राशि विभिन्न कार्यक्रमों एवं योजनाओं के माध्यम से मोदी सरकार गरीबों को दे चुकी है। जेटली ने फेसबुक पर लिखे अपने ब्लाग और बाद में संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कांग्रेस पार्टी को छोड़कर देश की कोई भी ऐसा राजनीतिक दल नहीं हैं जो देश को सात दशक से अधिक समय तक छला हो। इस पार्टी ने देशवासियों को कई नारे दिये लेकिन उन पर क्रियान्वयन के लिए बहुत कम संसाधन दिए। 
 
उन्होंने कहा कि 55 मंत्रालयों ने विभिन्न योजनाओं के तहत 1.8 लाख करोड़ रुपये की राशि सीधे लाभार्थियों के खाते में हस्तातंरित किये जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त खाद्य सब्सिडी के तौर पर 1.84 लाख करोड़ रुपये दिये गये हैं। उर्वरक सब्सिडी के तौर पर 75 हजार करोड़ रुपये प्रदान किए गए हैं। किसानों को प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत 75 हजार करोड़ रुपये , 50 करोड़ लोगों को आयुष्मान भारत योजना के तहत उपचार के लिए 20 हजार करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गयी है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने इन 5.34 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त विभिन्न योजनाओं के माध्यम से भी गरीबों को हजार करोड़ रुपये दिये हैं। गरीबों को आवास, रसोई गैस, बिजली, स्वच्छता और कई अन्य सरकारी सामाजिक योजनाओं के तहत राशि दी गयी है। यदि कांग्रेस की घोषणा को साधारण तरीके से समझना है तो पांच करोड़ परिवार को 72 हजार रुपये के हिसाब से कुल 3.6 करोड़ रुपये देने का वादा किया गया है जो मोदी सरकार द्वारा दी गयी राशि का दो तिहाई है।
 
उन्होंने कहा कि नेहरू युग में देश की विकास दर 3.5 प्रतिशत रही थी जबकि पूरी दुनिया तेजी से आगे बढ़ रही थी और उदारीकरण पर जोर दिया जा रहा था जबकि हमने अपनी अर्थव्यवस्था को नियंत्रण में रखा था। इंदिराजी अर्थव्यवस्था से बेहतर नारेबाजी को समझती थीं। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और अनगिनत नीतिगत बाधाओं ने भारत को पीछे ढकेल दिया। वर्ष 1991 में आर्थिक सुधार शुरू किये गये जबकि वर्ष 1971 में श्रीमती गांधी ने 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया था। उनके अर्थशास्त्र में उत्पादन बढ़ाने और संपदा निर्माण करना नहीं था लेकिन सिर्फ गरीबी को यहां वहां पहुंचना था। वर्ष 1971 के इस नारे को एक के बाद एक चुनाव में आगे बढ़ती रही। राजीव गांधी के पास गरीबी उन्मूलन का महान अवसर था और उन्होंने ऐसा करने की इच्छा भी जतायी थी लेकिन उनकी सरकार विवादों में फंस गयी। 
 
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