मुंबई। महाराष्ट्र की एक अदालत ने अंतरराष्ट्रीय नियमों का हवाला देते हुए एक फ़ैसले में कहा है कि प्रजनन का हक किसी भी आदमी के बुनियादी नागरिक अधिकारों में शामिल है और उसे इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इसके तहत किसी स्त्री को यह अधिकार है कि वह अलग रह रहे पति से बच्चा पैदा करे और पति उसके इस अधिकार से इनकार नहीं कर सकता। अदालत ने तलाक़ की अर्जी दिए हुए एक विवाहित जोड़े से कहा है कि वह एक महीने के अंदर किसी विवाह सलाहकार और आईवीएफ़ विशेषज्ञ से मिले और आईवीएफ़ के लिए तारीख़ तय करे।
दरअसल, तलाक़ की अर्जी के बाद 35 साल की इस महिला ने अदालत को दी एक और अर्ज़ी में कहा कि वह एक और बच्चा चाहती है जो उसके मौजूदा बच्चे का साथ दे और बुढ़ापे में उसका सहारा बने। उसने यह भी कहा कि चूँकि उसकी प्रजनन उम्र बहुत ज़्यादा नहीं बची है, उसे अभी ही बच्चा चाहिए। इसलिए वह अपने पति के साथ स्वाभाविक रूप से बच्चा पैदा करना चाहती है। उसके पति ने इससे इनकार करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को यौन क्रिया के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। इस पर उस उसकी पत्नी ने कहा कि ऐसी स्थिति में उसे आईवीएफ़ से बच्चा पैदा करने दिया जाए और इसके लिए उसका पति शुक्राणु दे।