हरसिंगार या फिर पारिजात नामक यह दिव्य पौधा सकारात्मक ऊर्जा यानी के पॉजिटिव एनर्जी फैलाता है।समुद्र मंथन के दौरान यह पौधा देवताओं के हिस्से में आया था। इसे लगाने से आपको अच्छे खयालात आते हैं। साथ ही आपकी मेहनत भी साकार होने लग जाती है। तो अगर आप इस पौधे को अपने घर आंगन में लगा लेते है तो हो सकता है कि जल्द ही आपके अच्छे दिन आने लग जाए। इस पौधे के बारे में कहा जाता है कि यह समुद्र मंथन के दौरान 11वे रत्न के रूप में देवताओं को मिला था। इसका वनस्पतिक नाम 'निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस' है। परिजात पर सुन्दर व सुगन्धित फूल लगते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इस वृक्ष के पत्ते और छाल विशेष रूप से उपयोगी होते हैं। इसके पत्तों का सबसे अच्छा उपयोग गृध्रसी (सायटिका) रोग को दूर करने में किया जाता है। यह हलका, रूखा, तिक्त, कटु, गर्म, वात-कफनाशक, ज्वार नाशक, मृदु विरेचक, शामक, उष्णीय और रक्तशोधक होता है। सायटिका रोग को दूर करने का इसमें विशेष गुण है। यह देशभर में पैदा होता है। यह पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है। ये पौधा पूरे भारत में विशेषतः बाग-बगीचों में लगा हुआ मिलता है। विशेषकर मध्यभारत और हिमालय की नीची तराइयों में ज्यादातर पैदा होता है।
स्वभाव : हारसिंहार ठण्डा और रूखा होता है। मगर कोई-कोई गरम होता है।
हानिकारक : हारसिंहार खांसी में नुकसानदायक है।
दोषों को दूर करने के लिए : हारसिंगार के दोषों को दूर करने के लिए कुटकी का उपयोग किया जाता है।
गुण : हारसिंगार बुखार को खत्म करता है। यह कडुवा होता है। शरीर में वीर्य की मात्रा को बढ़ाता है। इसकी छाल को अगर पान के साथ खाये तो खांसी दूर हो जाती है। इसके पत्ते दाद, झांई और छीप को खत्म करते हैं। इसके फूल ठण्डे दिमाग वालों को शक्ति देता है और गर्मी को कम करता है। हारसिंगार की जड़ व गोंद भी वीर्य को बढ़ाती है।
विभिन्न रोगों में उपयोग :
पालतू जानवरों को कोदो का विष चढ़ने पर: हारसिंगार के पत्तों का रस निकालकर जानवरों को पिला देना चाहिए।
खुजली: हारसिंगार के पत्ते और नाचकी का आटा मिलाकर पीसकर लगाने या दही में सोनागेरू घिसकर पिलाने या हरसिंगार के पत्ते दूध में पीसकर लेप करने से लाभ मिलता है।
गलगण्ड: हारसिंगार के पत्ते, बांस के पत्ते और फल्गुन के पत्ते इकट्ठे पीसकर सात दिन तक लेप करें।
श्वास या दमा का रोग: हारसिंगार की छाल का चूर्ण 1 से 2 रत्ती पान में रखकर प्रतिदिन 3-4 बार खाने से कफ का चिपचिपापन कम होकर श्वास रोग में लाभकारी होता है।
हारसिंगार के पौधे की छाल का 2 चुटकी चूर्ण पान में रखकर सेवन करना चाहिए।
मलेरिया का बुखार: हारसिंगार के 7-8 पत्तों का रस, अदरक का रस और शहद को मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पुराने से पुराना मलेरिया बुखार समाप्त हो जाता है।
खांसी: खांसी में 12-24 मिलीग्राम हारसिंगार की छाल का चूर्ण लेकर पान में रखकर दिन में 3-4 बार खाने से बलगम का चिपचिपापन दूर हो जाता है और खांसी में बहुत लाभ मिलता है।
बालों का झड़ना (गंजेपन का रोग): हारसिंगार के बीज को पानी के साथ पीसकर सिर के गंजेपन की जगह लगाने से सिर में नये बाल आना शुरू हो जाते हैं।
बवासीर : हारसिंगार का बीज 10 ग्राम तथा कालीमिर्च 3 ग्राम को मिलाकर पीस लें और चने के बराबर आकार की गोलियां बनाकर खायें। रोजाना 1-1 गोली गुनगुने जल के साथ सुबह-शाम खाने से बवासीर ठीक होती है।
हारसिगांर के 2 ग्राम फूलों को 30 मिलीलीटर पानी में रात को भिगोकर रखें। सुबह फूलों को पानी में मसलकर छान लें और 1 चम्मच चीनी मिलाकर खाली पेट खायें। इसे नियमित 1 सप्ताह तक खाने से बवासीर मिट जाती है।
हारसिंगार के बीजों को छील लें। 10 ग्राम बीज में 3 ग्राम कालीमिर्च मिलाकर पीसकर गुदा पर लगाने से बादी बवासीर ठीक होती है।
यकृत का बढ़ना: 7-8 हारसिंगार के पत्तों के रस को अदरक के रस और शहद के सुबह-शाम सेवन करने से यकृत और प्लीहा (तिल्ली) की वृद्धि ठीक हो जाती है।
तालु रोग: तालु रोग दूर करने के लिए हारसिंगार की जड़ को चबाने से रोगी को लाभ मिलता है।
नखूनों की खुजली: नाखूनों की खुजली में रोगी का नाखून खुजलाकर हारसिंगार का रस लगाने से रोग दूर होता है।
दाद: हारसिंगार की पत्तियों को पीसकर लगाने से `दाद´ ठीक हो जाता है।
मानसिक उन्माद : गर्मी की घबराहट को दूर करने के लिए हारसिंगार के सफेद फूलों के गुलकन्द का सेवन करना चाहिए।
साइटिका : हारसिंगार के पत्तों को धीमी आंच पर उबालकर काढ़ा बना लें। इसे साइटिका के रोगी को सेवन कराने से लाभ मिलता है।