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एमपी हाई कोर्ट ने जारी किया आदेश - प्रेम प्रसंग में संबंध बने तो यह शादी का झांसा नहीं

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Oct 2 2018 11:27AM | Updated Date: Oct 2 2018 11:27AM
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जबलपुर। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने सोमवार को अपने एक आदेश में साफ किया है कि दो वयस्कों के बीच प्रेम प्रसंग के दौरान यदि शारीरिक संबंध बन जाते हैं तो वे शादी के झांसे के दायरे में नहीं आएंगे बल्कि लिव-इन-रिलेशनशिप माने जाएंगे। कोर्ट ने इसी आधार पर आवेदक की जमानत अर्जी को नामंजूर कर दिया। न्यायमूर्ति जेपी गुप्ता की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान आवेदक लवकेश की ओर से अधिवक्ता सुशील कुमार तिवारी ने पक्ष रखा। 
 
10 साल की कैद हुई 
आवेदक की ओर अधिवक्ता ने दलील दी कि आवेदक को सेशन कोर्ट उमरिया ने शादी का झांसा देकर दुष्कर्म करने के आरोप में दोषसिद्ध होने पर 10 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है। वह जेल में है। जेल से बाहर आकर अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए उसे जमानत चाहिए। जिस युवती ने उस पर दुष्कर्म का आरोप लगाया, वह उसके साथ इंगेज थी। दोनों लिव-इन-रिलेशनशिप जैसी स्थिति में थे। इसलिए शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाने जैसी बात कतई नहीं थी, बल्कि दोनों की परस्पर सहमति से ही यह सब हुआ। 
 
अनबन होने पर मढ़ा आरोप
आवेदक के अधिवक्ता ने कोर्ट में कहा कि अनबन होने पर युवती ने दुष्कर्म का आरोप मढ़ दिया। जब सेशन ट्रायल चली तो प्रतिपरीक्षण में युवती की ओर से यह कथन भी किया गया था कि साथ रहते-रहते प्रेम हो गया था, इसीलिए वह युवक के झांसे में आकर शारीरिक संबंध बनाती रही। वैधानिक दृष्टि से यह कथन बेहद महत्वपूर्ण है। इसके आधार पर जमानत अपेक्षित है। कोर्ट ने बहस सुनने के बाद जमानत अर्जी मंजूर कर ली। 
अवमानना मामले में तीन अफसर हुए हाजिर
अवमानना के एक मामले में तीन आईएएस अधिकारी सोमवार को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में हाजिर हुए। न्यायाधीश एसके सेठ और न्यायाधीश बीके श्रीवास्तव की युगलपीठ के समक्ष अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान स्कूल शिक्षा विभाग की सचिव दीप्ति गौड, दमोह के कलेक्टर डॉ जे विजयकुमार तथा पूर्व कलेक्टर श्रीनिवास शर्मा उपस्थित हुए।
 
युगलपीठ ने उपस्थित अधिकारियों के जवाब को रिकॉर्ड में लेते हुए याचिका का निराकरण कर दिया। दमोह हटा निवासी इरशाद खान की तरफ से दायर अवमानना याचिका में कहा गया था कि उसने वर्ष 2011 में संविदा शाला शिक्षक ग्रेड 3 के लिए परीक्षा दी थी। चयन होने के बावजूद उसे नौकरी प्रदान नहीं की गई। न्यायालय ने वर्ष 2014 में उसके पक्ष में आदेश जारी करते हुए नौकरी प्रदान करने के निर्देश जारी किए थे। अधिकारियों की तरफ से पीठ को बताया गया कि याचिकाकर्ता के 75 प्रतिशत अंक थे। उससे अधिक अंक वालों को नियुक्ति दी गई थी।
 
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