अस्थमा जैसी बीमारी में कई मरीज दवाइयों का खर्च बचाने के लिए बीमारी के लक्षणों में सुधार देखते ही दवाई खाना बंद कर देते हैं, जो काफी खतरनाक हो सकता है। यह कहना है अस्थमा विशेषज्ञों का। अगर आपको अस्थमा की समस्या है, तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है, ये कोई ऐसी बीमारी नहीं है कि आप अपनी जिंदगी को खत्म समझें, बल्कि अगर इस बीमारी को सही तरीके से नियंत्रित किया जाए, तो आप आसानी से अपने रोजमर्रा के काम कर सकते हैं। सही इलाज के साथ अस्थमा को आसानी से नियंत्रित कर परिवार व दोस्तों के साथ बेहतरीन जिंदगी बिताई जा सकती है।
विशेषज्ञों का कहना है इस बीमारी के इलाज के दौरान लक्षण न दिखने का मतलब अस्थमा मुक्त होना नहीं है। अस्थमा को मैनेज करने में ये सबसे बड़ी चुनौती है कि जब दवाइयों को रोक दिया जाता है, तो इसके लक्षण कुछ समय के लिए सामने नहीं आते। ये अकसर दवाइयों की लागत बचाने के लिए किया जाता है, लेकिन इसका परिणाम ये होता है कि बीमारी काफी गंभीर रूप में सामने आती है और लक्षण किसी भी समय दोगुने प्रभाव के साथ उभरकर सामने आती है। इसलिए ये समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि लक्षण न दिखने पर अस्थमा बीमारी ठीक नहीं होता है। इसलिए दवाइयों को छोड़ने से पहले डॉक्टर का परामर्श अवश्य ले।
अस्थमा दीर्घकालिक बीमारी है जिसे लंबे समय तक इलाज की जरूरत होती है। कई रोगी जब खुद को बेहतर महसूस करते हैं, तो वह इनहेलर लेना छोड़ देते हैं। ये खतरनाक भी हो सकता है, क्योंकि आप उस इलाज को बीच में छोड़ रहे हैं, जिससे आप फिट और स्वस्थ रहते हो। रोगियों को इंहेलर छोड़ने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। अपनी मर्जी से इंहेलर छोड़ना जोखिमभरा हो सकता है।
इंहेलर न लेने की वजह रोगियों के इंहेलर न लेने के कई कारण है। इसमें दवाइयों की कीमत, साइड इफेक्ट्स, इंहेलर को लेकर भ्रांतियां और सामाजिक अवधारणाएं शामिल हैं। इसके साथ-साथ मनोवैज्ञानिक बाधाएं भी अवरोध पैदा करती हैं- जैसे कि स्वस्थसेवा से जुड़े प्रशिक्षक से असंतोष, अनुचित उम्मीदें, हालत के प्रति गुस्सा आना, स्थिति की गंभीरता का अहसास न होना और अपनी सेहत के प्रति लापरवाही बरतना सम्मिलित है।
इस तरह की भ्रांतियों और अवरोधकों को रोकने के लिए लोगों को इंहेलेशन थेरेपी के बारे में समझाना बहुत महत्वपूर्ण है, जिससे वह इस इलाज को बीच में न रोके। अस्थमा के खिलाफ लड़ना यानी कि इंहेलेशन थेरेपी अपनाना ही सबसे प्रभावी इलाज है। अब भारत में ये इलाज बहुत ही सस्ती कीमत यानी कि चार रुपए से लेकर 6 रुपए प्रतिदिन की कीमत पर उपलब्ध है।