25 Apr 2024, 18:51:37 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android
Health

जरूर करें नाड़ी शोधन प्राणायाम

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Oct 20 2016 10:48AM | Updated Date: Oct 20 2016 10:48AM
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

ध्यान की स्थिति में बैठ जाएं और दाहिने हाथ की इंडेक्स एवं मिडिल फिंगर को भौं के मध्य पर रखें। अंगूठा दायीं नासिका और रिंग फिंगर बायीं नासिका के पास रखें। रिंग फिंगर और अंगूठे से बारी-बारी से नासिकाओं को दबा कर श्वसन क्रिया को नियंत्रित करते हैं। इसमें नाक के एक छिद्र को बंद कर श्वास लेना है दूसरे से छोड़ना है। यह नासाग्र मुद्रा है, जो नाड़ी शोधन प्राणायाम के लिए शुरुआती अवस्था है।
 
प्रारंभिक अवस्था
ध्यान के आसन में रीढ़ की हड्डी, गरदन और सिर को सीधी रेखा में रखें तथा शरीर शिथिल बनाते हुए आंखें बंद कर लें, फिर नासाग्र मुद्रा में हाथों को ले जाएं। बायां हाथ घुटने पर ज्ञान मुद्रा में रखें। अंगूठे से नाक के दाहिने छिद्र को बंद कर लें तथा बायें छिद्र से पांच बार सांस लें और छोड़ें, किंतु श्वास-प्रश्वास की गति सामान्य रहेगी।
 
अब दाहिनी नासिका से अंगूठा हटा लें और बायीं नासिका को अनामिका से बंद करेंगे और दाहिनी नासिका से पांच बार सांस लें और छोड़ें। हाथ नीचे कर लें और दोनों नासिका से एक साथ पांच बार सांस लें। यह एक चक्र हुआ। इसे पांच चक्र या तीन से पांच मिनट तक अभ्यास करें। श्वसन क्रिया के क्रम में नाक से कोई आवाज न हो। 
 
दूसरी अवस्था
इसमें श्वास-प्रश्वास के समय को नियंत्रित किया जाता है। अंगूठे से दाहिनी नासिका को बंद करें तथा बायीं नासिका से धीमी गति से सांस लेते हुए मन में गिनती करें- 1 ओम, 2 ओम, 3 ओम जब तक सांस अंदर भर नहीं जाए, बायीं नासिका को अनामिका से बंद कर लें और दाहिनी नासिका से अंगूठा हटाएं और सांस छोड़ते हुए पुन: गिनती करें 1 ओम, 2 ओम, 3 ओम कोशिश करें कि श्वास और प्रश्वास का समय बराबर रहे।
 
उसके बाद दाहिनी नासिका से उतनी ही गिनती तक उसी प्रकार सांस लें। अब दाहिनी नासिका को बंद कर लें और बायीं नाक से गिनती के साथ सांस छोड़ें। यह एक चक्र हुआ। इसे 10 चक्र तक करें।

अनुपात और समय...
शुरू में पांच बार ॐ तक गिनती करते हुए सांस लें और वैसे ही छोड़ें। पर धीरे-धीरे एक बार ॐ को बढ़ाते हुए 12 ॐ तक सांस लें और छोड़ें, किंतु जोर नहीं लगाएं। यदि बेचैनी अनुभव हो, तो गिनती हटा दें। दक्षता होने पर 1:2 के अनुपात में सांस लें, जैसे-पांच बार ॐ तक सांस लें और 10 ॐ तक सांस छोड़ें। इस अनुपात में अभ्यास करने से मस्तिष्क और हृदय में एक शांति कारक लय स्थापित होती है।
 
श्वसन : सांस धीमी, लंबी और गहरी होनी चाहिए। सांस लेने में जोर न लगाएं।
 
सजगता : आज्ञा चक्र पर होनी चाहिए।
 
सावधानियां : श्वसन क्रिया में जोर नहीं लगाना चाहिए। मुंह से सांस न लें। यदि कोई परेशानी हो, तो अभ्यास बंद कर दें।
 
क्रम : डायनेमिक आसनों तथा भ्रामरी एवं उज्जायी प्राणायामों के पूर्व अभ्यास उचित होगा। अभ्यास प्रात: काल में करना उचित है।

मिलती है पर्याप्त ऑक्सीजन
इस अभ्यास से शरीर में ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में पहुंचता है तथा संपूर्ण शरीर का पोषण करता है। इस अभ्यास से शरीर के अंदर से कार्बन डाइऑक्साइड तथा विषाक्त तत्व सबसे ज्यादा बाहर आते हैं तथा रक्त शुद्ध होता है। इसके अलावे यह हमारे नर्वस सिस्टम को संतुलित करता है।
 
यह हमारे फिजिकल और मेंटल एक्टीविटी को भी प्रभावित करता है। यह प्राणायाम मानसिक शांति बढ़ाता है। शारीरिक थकान तथा हमारी चिंताओं को दूर करता है। इसके अलावा यह नाड़ियों इड़ा और पिंगला में संतुलन लाता है, जिसके चलते हमारी सुषुम्ना नाड़ी का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है, जो ध्यान की व्यवस्था में जाने में मदद करता है।
  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »